________________
सूत्र संवेदना-५
लिए शब्द उच्चारण रूप ही है। इसके अलावा देवी के अविरतिकृत कार्य के प्रति आचार्य भगवंत बहुमान व्यक्त नहीं करते, बल्कि अविरतिधर के विशेष धार्मिक कार्यों की अनुमोदना व्यक्त करते हैं। इस तरह यह नमस्कार वंदनात्मक नहीं, बल्कि शासनसेवा के कार्य की अनुमोदना स्वरूप है।
ऐसा नमस्कार परम औचित्य का दर्शन करवाता है। जो भी हमारी साधना में सहायक होता है, शुभभाव की निष्पत्ति में जिन-जिन उपकारियों का योगदान है उनको स्मरण में लाना, उनके प्रति अहोभाव व्यक्त करना, कृतज्ञता दिखाना, हमारा औचित्य है।
सम्यग्दृष्टि देव मोक्षमार्ग की साधना में सहायक वातावरण का सृजन करने में, चित्त की प्रसन्नता या मन की स्वस्थता का साधन दिलाने में ज़रूर सहाय करते हैं । उनके स्मरण से शासन द्वेषी देवों से हुए उपद्रव आदि शांत होते हैं और साधना निर्विघ्न बनती है, इसलिए उनका स्मरण, उनके सत्कार्य का अनुमोदन आवश्यक है।
अब किसे नमस्कार करना है, यह बताते हैंभगवति ! - हे भगवती ! (आपको नमस्कार हो ।)। 'भगवत्' शब्द का स्त्रीलिंग रूप भगवती होता है। यहाँ स्तोत्रकार ने विजयादेवी को 'भगवती' के रूप में संबोधित किया है। भगवती अर्थात् ज्ञान, माहात्म्य, रूप, यश, वीर्य, प्रयत्न आदि वाली देवी !
जिज्ञासा : 'भग' शब्द का अर्थ तो तीर्थंकर परमात्मा में घटित होता है, इसलिए उनको ही भगवान के रूप में संबोधित किया जाता है। तो ऐसे विशेषण का प्रयोग देवी के लिए कैसे कर सकते हैं ?
तृप्ति : बात सही है ! ‘भग' शब्द से सूचित ज्ञानादि अर्थों की पराकाष्ठा तो अरिहंत परमात्मा में ही होती है, फिर भी विजयादेवी में