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धर्माराधना से उपसंहार गाथा-४५
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योग्य अध्यवसाय हो सकते हैं। कर्मभूमि के सिवाय अन्य स्थलों में जन्म लेने वालों के लिए ऐसे अध्यवसाय संभव नहीं होते। इसलिए कहते हैं - भरत, ऐरावत एवं महाविदेह क्षेत्र में जो कोई भी साधु भगवंत हैं, -
अ - (च) - भी
यहां 'च' शब्द 'अपि' (भी) अर्थ में है। इससे यह कहना है कि कर्मभूमि में रहे हुए साधु भगवंतों को तो वंदना है ही, परंतु देवता संहरण आदि से कोई साधु भगवंत अकर्मभूमि में ले गए हों या नंदीश्वरादि तीर्थ की यात्रा के लिए कोई जंघाचरण, विद्याचरण आदि लब्धिसम्पन्न मुनि गए हों तो उन्हें भी वंदना करने में आती है। ऐसे प्रयोग द्वारा शास्त्रकार की साधु मात्र को वंदन करने की भावना व्यक्त होती है।
कहलाता है। इसके बाहर किसी भी मनुष्य का जन्म या मृत्यु नहीं होती, इस तरह जंबूद्वीप की एक ओर (२+४+८+८) कुल २२ लाख योजन प्रमाण क्षेत्र में एवं दूसरी ओर भी २२ लाख योजन प्रमाण क्षेत्रों में मनुष्य होते हैं। इस तरह जंबूद्वीप सहित (१+२२+२२) कुल ४५ लाख योजन प्रमाण मनुष्य लोक है। अढाई द्वीप में १५ कर्मभूमि, ३० अकर्मभूमि एवं ५६ अंत:प आते हैं। जिसमें ३० अकर्मभूमि एवं ५६ अंतर्वीप में युगलिक मनुष्य उत्पन्न होते हैं जो साधु नहीं बन सकते। परंतु १५ कर्मभूमियों में उत्पन्न हुए मनुष्य ही साधु बन सकते हैं। ये १५ कर्मभूमियाँ निम्नलिखित हैंजंबूद्वीप में १ भरत १ऐरावत १ महाविदेह घातकी घंड में २ भरत २ ऐरावत २ महाविदेह अर्धपुष्करवर द्वीप में २ भरत २ ऐरावत २ महाविदेह कुल
५ भरत ५ ऐरावत ५ महाविदेह = १५ कर्मभूमि ३० अकर्मभूमियाँ निम्न प्रकार से है।
हिमवंत | हिरण्यवंत | हरिवर्ष | रम्यकवर्ष | देवकुरु | उत्तरकुरु जंबुद्वीप में घातकीखंड में अर्धपुष्करवर द्वीप में २
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