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ग्यारहवाँ व्रत गाथा-२९
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• अति आनंदप्रद संयम जीवन की प्राप्ति और पालन सुलभ हो इसलिए परमकृपालु परमात्माने पौषध जैसा सुंदर अनुष्ठान बताया है ।
• पौषध दौरान मुझे मेरी वृत्ति और प्रवृत्ति को दया और जयणा प्रधान बनाने की शिक्षा मिलती है । इससे जो संस्कारों की प्राप्ति होगी उससे साधु जीवन तो सुंदर बनेगा ही पर आज का गृहस्थ जीवन भी जयणा प्रधान बन जाएगा ।
• लक्ष्य शुद्धि के साथ पौषधोपवास करके मुझे आत्मभाव में रहने की आदत डालनी है, इसलिए मुझे पौषध दौरान तो शरीर, व्यापार आदि के राग से मुक्त होना है।