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________________ १६८ वंदित्तु सूत्र हो पाऊँ एवं आपके जैसा जीवन जीकर सर्वथा जड़ वस्तुओं के भोगोपभोग रहित अनाहारी पद प्राप्त कर सकूँ ।' अवतरणिका: भोगोपभोग परिमाण व्रत में आहार संबंधी अतिचारों को बताकर, अब वाणिज्य संबंधी अतिचारों को इन दो गाथाओं द्वारा बताते हैं - गाथा : इंगाली-वण-साडी-भाडी-फोडी सुवज्जए कम्मं । वाणिज्नं चेव दंत-लक्ख-रस-केस-विस-विसयं ।।२२।। एवं खु जंतपीलण (पिल्लण)-कम्मं निल्लंछणं च दव-दाणं। सर-दह-तलाय-सोसं, असई-पोसं च वज्जिज्जा ।।२३।। अन्वय सहित संस्कृत छाया : आङ्गारी-वन-शकटी-भाटी-स्फोटं कर्म सुवर्जयेत्। एव च दन्त-लाक्षा-रस-केश-विष-विषयम् वाणिज्यं ।।२२।। एवं खलु यंत्र-पीलनकर्म, निश्छिनं च दवदानम्। सरो-हृद्-तडाग-शोषम्, असतीपोषं च वर्जयेत् ।।२३।। गाथार्थ : १) अंगार कर्म, २) वन कर्म, ३) शकट कर्म, ४) भाटक कर्म, ५) स्फोटक कर्म : ये पाँच कर्म श्रावक को पूरी तरह से छोड़ देने चाहिए तथा १. दाँत, २. लाख, ३. रस, ४. केस, ५. विष संबंधी वाणिज्य (व्यापार) का एवं इसी तरीके से १-यंत्रपिलन कर्म, २-निल्छन कर्म, ३-दवदान कर्म, ४- सरोवरद्रह-तालाब आदि का शोषण कर्म तथा ५-असती पोषण कर्म, इन पाँच कर्मों का श्रावक को त्याग करना चाहिए। विशेषार्थ : संसार में रहने वाले श्रावक को भोगोपभोग की विविध सामग्री प्राप्त करने के लिए धन की ज़रूरत पड़ती है एवं धन कमाने के लिए व्यापार करना पड़ता हैं।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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