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________________ सातवाँ व्रत गाथा - २० १५९ इस व्रत को स्वीकार करके श्रावक भोजन संबंधी अनेक नियम पालते ही हैं, परंतु इसके उपरांत जिनसे स्वपर का मन विकार युक्त बने, अत्यंत आसक्ति पैदा हो, उन्माद हो, लोक निन्दा का कारण बने ऐसा उद्भट (असभ्य) वेष, वाहन, अलंकार आदि भोगोपभोग के साधनों का भी श्रावक को नियम लेना चाहिए । भोगोपभोग की किन सामग्रियों में श्रावक नियम करता है उसे बताकर अब उनमें लगे दोषों की इस गाथा द्वारा निन्दा करते हैं। मज्जम्मि अ मंसम्मि अ - मदिरा, मांस एवं 'अ' शब्द से मधु, आदि सर्व अभक्ष्य एवं अनंतकाय वस्तुएँ। मज्जम्मि अ - मदिरा आदि नशाकारक वस्तुओं के विषय में। जिसके सेवन से नशा चढ़े याने मनुष्य स्वयं पर नियंत्रण खो बैठे उस द्रव्य को मदिरा कहते हैं। पूर्वकाल में तो मुख्यतया काष्ट एवं पिष्ट (आटा) ऐसी दो प्रकार अदरक (Fresh/Green ginger) ५) हरा कचूरा (Long zedoari) ६) शतावरी (Asparagus) ७) विरालिका, ८) कुंवरपाठ (Aloevera) ९) थोर (Prickly pear, Shipper thorn) १०) गलो (Heartlived moonseed) ११) लहसुन (Garlic) १२) वांसकरेला, १३) गाजर (Carrot) १४) लूणी (Purslen) १५) पद्मिनी कंद, १६) गरमर १७) कूंपणो, १८) खीरसूरा, १९ ) थेग कि भाजी, २०) हरी मोथ (Fresh / Green nutgrass) २१) लवण नामक वृक्ष की छाल २२) खिल्लुडकंद २३) अमृतवेल, २४) मूली का कंद (Raddish) २५) कुकुरमुत्ता / छत्रक (Mushrooms) २६) दलहन को भिगोने से निकलते अंकुर अँखुआ (फुनगीवाले मूँग आदि Sprouts) २७) वत्थुला (White goose foot) २८) शूकरवल्ली २९) पालक की भाजी (Spinach) ३०) कच्ची इमली (Soft or just developed tamarind fruit) ३१) आलू कंद (Potato) ३२) प्याज़ (Onion) मात्र ये बत्तीस ही अनंतकाय नहीं, परंतु 'जीवविचार' में कहे हुए 'गुढ़सिरसंधिपव्वं समभंगमहिरुगं च छिन्नरुहं' आदि लक्षणों वालें अन्य भी अनंतकाय है और वे सब अभक्ष्य हैं। एवं नरक आदि दुर्गति के द्वार हैं। १७) बोल अचार (Pickles) तीन दिन बाद अभक्ष्य हैं। मक्खन १८) घोलवडा (दही वड़ा) दलहन (द्विदल) एवं कच्चे दही के संयोग से बनता है इसलिए द्विदल होता है। इससे हरेक प्रकार के द्विदल अभक्ष्य हैं ऐसा समझ लेना । १९) बैंगन (Brinjal) : काम वृत्ति पोषक एवं बहु निद्रा का कारण है तथा बहुबीज है। २०) अनजान फल-फूल ( Unknown fruits) : प्राण हानि तथा रोगोत्पत्ति की संभावना है। २१) तुच्छ फल : खाने का कम और फेंकने का अधिक है। २२) चलित रस : वर्ण, गंध, रस, स्पर्श बदल जाते हैं।
SR No.006127
Book TitleSutra Samvedana Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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