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वंदित्तु सूत्र
मुक्त होने के लिए साधक को सोचना चाहिए की पीडाकारक ग्रहों की तरह परिग्रह भी धन, धान्य आदि नौ प्रकार के होते हैं। इन नौ प्रकार के परिग्रहों को आगम में अनेक तरह से तिरस्कृत किया गया है । जैसे कि,
• परिग्रह द्वेष का घर है क्योंकि परिग्रह की ममता के कारण जब कोई अपनी संपत्ति पर नज़र डालता है या उसको नुकसान पहुँचाता है तब उन पर द्वेष एवं दुर्भाव उत्पन्न होता है, उसके साथ दुश्मनी होती है।
• परिग्रह धृति का ह्रास करने वाला है, क्योंकि परिग्रह से प्राप्त हुई आपत्तियाँ धीरज का नाश करती है।
• परिग्रह क्षमा का शत्रु है, क्योंकि परिग्रह को किसी भी प्रकार का नुकसान पहँचाने वाले व्यक्ति के प्रति क्रोध आने के कारण जीवन में से सहनशीलता एवं क्षमा नष्ट हो जाते हैं।
• परिग्रह विक्षेप का सर्जक है, क्योंकि परिग्रह के कारण परस्पर के संबंधों में, व्यवहार में विक्षेप पड़ने की शुरुआत हो जाती है।
• परिग्रह को मद का मित्र कहा है, क्योंकि परिग्रह बढ़ने से जैसे-जैसे अज्ञानी लोगों की तरफ से मान आदि मिलता है, वैसे-वैसे अहंकार एवं मद बढ़ता जाता
• परिग्रह दुर्ध्यान का भवन है, क्योंकि परिग्रह के कारण सतत इष्ट वस्तु पाने की इच्छा एवं उसकी सुरक्षा आदि की चिंता से जीवन में आर्त्त-रौद्र ध्यान घर कर जाते हैं।
• परिग्रह स्वयं एक कष्टकारी शत्रु है। हम ऐसा मानते हैं कि परिग्रह एक मित्र की तरह तकलीफों में सहायक बनेगा, परंतु जीवन में जैसे-जैसे परिग्रह बढ़ता है वैसे-वैसे कष्टों का प्रारंभ होता जाता है। परिग्रह की प्राप्ति में, देखभाल में,
3 द्वेषस्यायतनं धृतेरपचयः क्षान्ते: प्रतीपो विधि-,
याक्षेपस्य सुहृन्मदस्य भवनं ध्यानस्य कष्टो रिपुः । दुःखस्य प्रभवः सुखस्य निधनं पापस्य वासो निजः, प्राज्ञस्यापि परिग्रहो ग्रह इव क्लेशाय नाशाय च ।।
- सूयगडांग सूत्र की टीका