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वंदित्तु सूत्र
महात्माओं को जिन्होंने काम के प्रबल निमित्तों के बीच भी तन, मन को विकृत नहीं होने दिया | विकारी निमित्तों के बीच भी आत्मभाव में स्थिर रहने वाले इन महापुरुषों के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ एवं अभिलाषा करता हूँ कि मुझ में भी उनके जैसा सत्त्व प्रकट हो और मैं भी आलोचना, निन्दा, गर्हा द्वारा लगे हुए दोषों की शुद्धि कर पुन: व्रत में स्थिर हो सकूँ ।
चित्तवृति का संस्करण :
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आज के जमाने में सहशिक्षण वाले स्कूल-कॉलेजों, टी.वी., इन्टरनेट, सिनेमा एवं अनेक अश्लील पत्रिकाओं के कारण इस व्रत का अखंडित पालन अत्यंत मुश्किल बन गया हैं। श्रावक को यह व्रत आसान नहीं है। इस व्रत को पालने के लिए श्रावक को सुदर्शन सेठ, विजयसेठ एवं विजया सेठानी तथा स्थूलभद्रजी जैसे महापुरुषों को सतत ध्यान में रखना चाहिए। काम-वासनाओं के स्वरूप का चिंतन करना चाहिए एवं उसके कटु फलों की विचारणा करके मन को वैराग्य से वासित रखना चाहिए, तो ही स्वदारा संतोष - परस्त्रीगमन विरमण व्रत का यथायोग्य पालन हो सकता है।
सर्वथा ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले श्रमणों के लिए जैसे ब्रह्मचर्य की नव वाड़ का पालन है, वैसे ही श्रावक के लिए भी अन्य स्त्री के साथ व्यवहार में इन मर्यादाओं का (वाड़ों का) पालन करना योग्य है, तो ही अच्छी तरह व्रत का पालन हो सकता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए यह ठान लेना चाहिए कि,
• किसी का स्पर्श कभी सुख नहीं दे सकता । स्पर्श के साथ मिली हुई अपनी कल्पनाएँ एवं विकृत भाव के कारण ही स्पर्श सुखकारक लगता है।
• एकबार मैथुन सेवन से असंख्य जीवों की हिंसा तो होती ही है, उससे रागादि के कुसंस्कार में तीव्रता भी बढती जाती है । इसीलिए भगवान ने हरेक व्रत में अपवाद बताए है; पर इस व्रत मे कोई अपवाद नहीं है ।
व्रतधारी श्रावक के लिए पालने योग्य मर्यादाएँ :
• परस्त्री या परपुरुष जहाँ अकेले हों उस स्थान में अधिक समय न रहना, एकांत में उनसे न मिलना, क्योंकि एकांत स्थान में काम-वासनाएँ जागृत होने की संभावना अधिक होती हैं।