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गुर्जर आवृत्ति का प्राक्कथन
सूत्र संवेदना की यात्रा को आगे बढ़ाते हुए विश्राम स्थान आया 'वंदित्तु' । पूर्व के सूत्रों की तरह इस सूत्र का लेखन भी मैंने वर्षों पहले सामान्य तौर से किया था। वह लेखन सूत्र संवेदना के वाचक वर्ग की अपेक्षाओं को तृप्त कर सके ऐसा नहीं था। अंतर को झकझोर दे, ऐसी प्रेरक एवं संवेदनात्मक लेखनी से उनकी अपेक्षाओं को पूर्ण करने हेतु, इस सूत्र का लेखन पुनः प्रारंभ किया। अभी तक के सूत्र तो रोज बोलने के कारण सतत अनुप्रेक्षा के विषय बने रहते थे, जबकि 'वंदित्तु. सूत्र' तो अणुव्रतों के अतिचारों संबंधी होने के कारण, महाव्रतों को स्वीकार करने के बाद पिछले ३२ वर्षों से विशेष अनुप्रेक्षा का विषय नहीं बना था।
सच कहूँ तो आप जैसे अनेक जिज्ञासुओं के कारण इस सूत्र का गहन अवलोकन करते हुए एक वास्तविकता समझ में आई कि, इस सूत्र की यदि पहले से गहरी अनुप्रेक्षा करके, अणुव्रत के पालन पूर्वक सुंदर श्राविका जीवन जीकर, बाद में महाव्रतों का स्वीकार किया होता तो नि:शंकपूर्ण कह सकती हूँ कि आज संयम जीवन में जो आत्मिक आनंद की अनुभूति हो रही है उससे अधिक विशिष्ट आनंद की अनुभूति हो सकती थी, क्योंकि इस सूत्र की अवगाहना करते हुए जाना कि 'अणुव्रतों एवं महाव्रतों के बीच कोई सामान्य संबंध नहीं, परंतु जन्यजनक भाव जैसा विशेष संबंध है'।