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________________ सात लाख सूत्र १४७ एक टुकडे को भी बोने से पुनः उग सके, वैसे वनस्पति के जीवों को साधारण वनस्पतिकाय कहते हैं । जो साधारण वनस्पतिकाय जमीन में उगते हैं उन्हें कंदमूल भी कहते हैं । उनके एक ही शरीर में अनंत जीव होने से उन्हें अनंतकाय या निगोद भी कहते हैं । आलू, प्याज, मूली, गाजर, कच्ची अदरक, जमीकंद, कच्ची हल्दी, पांच वर्ण की फफूंद वगैरह अनंतकाय जीवों के अनेक प्रकार हैं । स्वाद की खातिर या शरीर के राग से जब भी ऐसे जीवों की विराधना हुई हो, उन सब विराधनाओं को इस पद द्वारा याद करके उन जीवों से क्षमायाचना करनी चाहिए । बे लाख बेइन्द्रिय : बेइन्द्रिय जीवों की योनि दो लाख है । शंख, कोडी, अलसिया, जोंक वगैरह बेइन्द्रिय जीव हैं । बासी भोजन आदि में भी बेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होती है, वैसा शास्त्र में कहा गया है। इसलिए ब्रेड, बटर (मक्खन), चीज, पिज़ा की रोटी, किसी भी प्रकार का tinned food या होटल-लारी आदि से किसी भी प्रकार का बासी खाना खाने से, अनछना पानी के उपयोग करने से उन जीवों की विराधना होती है। इसके अलावा घी, अनाज या पानी की टंकी में भी जयणा न रखी जाए, तो बेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होती है एवं उसके बाद विराधना की परंपरा चलती है । जाने अनजाने ऐसी कोई विराधना हुई हो, तो उनकी यह पद को बोलते हुए क्षमापना मांगनी चाहिए । बे लाख तेइन्द्रिय : तेइन्द्रिय जीवों की योनि दो लाख है । कीडा, मकोडा, जूं, लीख, सवा, ईयल, दीमक वगैरह तेइन्द्रिय जीव हैं । इन जीवों की उत्पत्ति जिसमें हुई हो, वैसे अनाज को पीसवाने में, खाट, गद्दे वगैरह धूप में रखने से, जंतुनाशक दवाइयों का उपयोग करने से इन जीवों की हिंसा होती है, ऐसी हिंसा को याद करके उन जीवों से क्षमा याचना करनी चाहिए ।
SR No.006126
Book TitleSutra Samvedana Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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