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सूत्र संवेदना - २ सभी चैत्य और सभी बिंब को अलग-अलग याद करना सम्भव नहीं है इसलिए अब उनको सामूहिक रूप से स्मरण में लाकर वंदन करते हैं
सत्ताणवइ-सहस्सा, लक्खा छप्पन अट्ठकोडीओ, बत्तीस सय बासीयाइं तिअलोए चेइए वंदे - तीनों लोक में रहे आठ करोड़ छप्पन लाख, सत्तानबे हजार, बत्तीस सौ बयासी (८,५७,००२८२) शाश्वत चैत्यों को मैं वंदन करता हूँ।
८,००,००,००० आठ करोड़ ५६,००,००० छप्पन लाख ९७,००० सत्तानबें हजार ३,२०० बत्तीस सौ
८२ बयासी
८,५७,००,२८२ पन्नरस कोडी सयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवन्ना, छत्तीस सहस्स असीइं, सासय-बिंबाइं पणमामि - (शाश्वत चैत्यों में बिराजमान) पंद्रह सौ करोड़ (पंद्रह अबज), बयालीस करोड़, अट्ठावन लाख, छत्तीस हजार और अस्सी शाश्वत जिनबिंबों को मैं प्रणाम करता हूँ । (१५,४२,५८,३६,०८०)
इस प्रकार इस चैत्यवंदन में प्रातः स्मरणीय तीर्थंकर देवो का गुणगान करके उनके बिंबों, चैत्यों तथा तीर्थों को भक्ति-भाव से वंदन किया जाता है। संकल्पपूर्वक चौबीस तीर्थंकरों आदि को उपयोग में लाकर वंदन करने से अरिहंत आदि उत्तम पुरुषों की तरफ चित्त विशेष आवर्जित (आकर्षित) होता है, जिससे संसार के तुच्छ भावों से चित्त विमुख होता है तथा संसार अल्प होता है, विशेष पुण्य का बंध होता है और पंरपरा से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है । 6. इस चैत्य तथा बिंब की विशेष समझ सूत्र संवेदना-५ में सकल तीर्थ' सूत्र से जानना ।