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________________ ३३८ सूत्र संवेदना - २ ११. फिर नमोऽत्थु णं कहें । १२. उसके बाद पुनः अरिहंत चेईयाणं आदि (नं. ७ से १० के अनुसार) कहकर चार थुई कहें । १३. फिर नमोऽत्थु णं कहकर, जावंति० बोलकर एक खमासमण देकर जावंत के वि साहू० बोलकर स्तवन कहें और फिर जयवीयराय सूत्र (आभवमखंडा तक) बोलें । इस प्रकार बारह अधिकार द्वारा चैत्यवंदना करने से अति प्रसन्न हुआ साधक पुनः योगमुद्रा में काया को स्थापन करके 'नमोऽत्थु णं' सूत्र बोलता है और हाथ को मुक्ताशक्ति मुद्रा में रखकर 'जावंति चेईयाई' बोलकर एक खमासमण देकर 'जावंत के वि साहू' बोलकर स्तवन बोलता है, फिर प्रभु को प्रार्थना करके 'जयवीयराय सूत्र' बोलता है । इतनी क्रिया कैसे भाव से करनी चाहिए, वह मध्यम चैत्यवंदन में से जान लें। १४. उसके बाद खमासमण देकर, चैत्यवंदन का आदेश माँगकर, उसका स्वीकार करके चैत्यवंदन करके, जं किंचि, नमोऽत्थु णं कहकर संपूर्ण जयवीयराय सूत्र कहें। १५. उसके बाद प्रभु को वंदना स्वरूप एक खमासमण देकर अंत में विधि करते जो अविधि हुई हो, उसका मिच्छा मि दुक्कडं' दे। द्रव्यजिन जे अ अईया...तिविहेण वंदामि तक तीसरा एक चैत्य/स्थापनाजिन अरिहंत चईयाणं+काउस्सग्ग+थुई नामजिन लोगस्स पाँचवा तीनों भुवन के स्थापना जिन सव्वलोए अरिहंत-काउस्सग्ग-थोय छठ्ठा विहरमान जिन पुक्खरवरदीवड्ढे...नमंसामि तक सातवाँ श्रुतज्ञान तमतिमिर-काउस्सग्ग-थोय आठवाँ सर्व सिद्ध भगवंत सिद्धाणं बुद्धाणं...सव्वसिद्धाणं तक नौवाँ तीर्थाधिपति श्रीवीर जो देवाण विदेवो...नरं व नारिं वा तक उज्जयंत (गिरनार) उज्जितसेल...नमंसामि तक ग्यारहवाँ अष्टापद तीर्थ चत्तारि...दिसंतु तक बारहवाँ सम्यग्दृष्टि देव वेयवचगराण-काउस्सग्ग-थोय दूसरा चौथा EEEEEE दसवा
SR No.006125
Book TitleSutra Samvedana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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