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सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र शास्त्र में नमस्कार के तीन प्रकार बताए हैं; इच्छायोग, शास्त्रयोग तथा सामर्थ्ययोग। उसमें इच्छायोग का नमस्कार परमात्मा के गुणों में लीन बनने की इच्छा रूप है। शास्त्रयोग के नमस्कार में शास्त्र के अनुसार सब प्रकार का प्रयत्न होता है और सामर्थ्य योग में आत्मा के सम्पूर्ण सामर्थ्य से परमात्मा के गुणों में लीन होने की प्रक्रिया है । जब सर्वश्रेष्ठ कोटि का सामर्थ्ययोग का नमस्कार साधक को प्राप्त होता है, तब वह परमात्मा के गुणों में, परमात्मा के सूक्ष्म स्वरूप में अपनी चेतना को याने की आत्मा के ज्ञानोपयोग को लीन करता है। परमात्मा के गुणों में लयलीन होने से मोह का आवरण आत्मा पर से दूर होता है और संपूर्ण रागादि दोष रहित वीतराग भाव स्वरूप चेतना प्रकट होती है। वीतराग स्वरूप चेतना का प्रगटीकरण ही संसार का तरण है। सामर्थ्ययोग द्वारा एक ही बार किया गया नमस्कार स्त्री या पुरुष, किसी को भी इस संसार सागर से तैरा सकता है । __ यहाँ जिस नमस्कार की बात की गई है, वह अत्यंत दुर्लभ सामर्थ्ययोग का नमस्कार है। इस नमस्कार तक पहुँचने का मार्ग जानने की उत्सुकता जिज्ञासु को हो, वह सहज है। इस नमस्कार तक पहुँचने के लिए हमेशा परमात्मा के गुणों का विचार करना चाहिए, परमात्मा के गुणों के प्रति आदर प्रकट करने के लिए उत्तम द्रव्यों से प्रभु की पूजा करनी चाहिए, गंभीर स्वर में स्तुति-स्तवन गाने चाहिए, उनका जप करना चाहिए, उनका ध्यान करना चाहिए और यथाशक्ति उनके वचनानुसार जीवन जीने का प्रयत्न करना चाहिए। इस प्रकार प्रयत्न करते-करते धीरे-धीरे चित्त परमात्मा के गुणों के प्रति आकर्षित होता है और उनके गुणों के प्रति आदरभाव बढ़ता है। आदरभाव बढ़ने से मोहादि दोष कमज़ोर पड़ते हैं। मोह कमज़ोर पड़ते ही पुनः परमात्मा की भक्ति की वृद्धि होती है। इस प्रकार क्रमिक विकास करते-करते एक दिन यह सामर्थ्ययोग का नमस्कार अवश्य प्राप्त हो सकता है।
6 इच्छायोग, शास्त्रयोग और सामर्थ्ययोग की विशेष जानकारी 'नमोत्यु णं' सूत्र में से प्राप्त करें।