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सूत्र संवेदना - २ संपूर्ण स्वाधीन बनकर अपने स्वाभाविक सुख का अनुभव कर सकती है । सिद्ध परमात्मा याने कर्म से मुक्त होकर सहज सुख में मग्न बनी हुई, सिद्धशिला पर बसी हुई आत्मा । ऐसे सिद्ध भगवंतों को इस पद द्वारा वंदन किया जाता है ।
सिद्ध शब्द से योगसिद्ध, मंत्रसिद्ध, तपः सिद्ध, कर्मसिद्ध आदि अनेक सिद्ध भगवंतो का समावेश हो सकता है, उन सबका ग्रहण न हो जाए, इसलिए सिद्ध भगवान के स्वरूप को स्पष्ट करता हुआ यह दूसरा पद कहते हैं -
बुद्धाणं - केवलज्ञान को प्राप्त हुए (सिद्ध भगवंतों को मैं नमस्कार करता हूँ ।)
सिद्धावस्था प्राप्त करने से पहले कर्मों का नाश करने के लिए साधक जब क्षपक श्रेणी का प्रारम्भ करता है, तब गुणस्थानक में उत्तरोत्तर आगे बढ़ते हुए, चार घातीकर्मों का क्षय करके वह तेरहवें सयोगी केवली गुणस्थानक को प्राप्त करता है, जहाँ केवलज्ञान आदि आत्मा के अनंत गुण प्रकट होते हैं । प्रकट हुए वे गुण अनंतकाल तक सिद्धावस्था में भी आत्मा के साथ रहते हैं, इसीलिए सिद्ध भगवंत 'बुद्ध' कहलाते हैं।
केवलज्ञान को प्राप्त हुए सिद्ध भगवंत चराचर जगत् को हाथ में रहे हुए पानी के बून्द की तरह स्पष्ट देख सकते हैं। किसी भी द्रव्य के किसी भी पर्याय को देखने के लिए उनको अब नेत्र, पुस्तक या किसी भी चीज़ की आवश्यकता नहीं पड़ती । सर्व द्रव्य, सर्व काल, सर्व जीव और सर्व जड़ पदार्थों की भूत-भविष्य-वर्तमान सर्व अवस्थाओं को वे हरक्षण किसी की सहायता के बिना देख सकते हैं । सिद्ध और बुद्ध भगवान के अन्य विशेषण कहते हैं
पारगयाणं संसार के पार को प्राप्त किए हुए अथवा सभी प्रयोजन जिनके सिद्ध हो गए हैं । (वैसे सिद्ध परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ ।) 2 जो ऐसा मानते हैं कि जगत् की उन्नति के लिए भगवान अवनितल के ऊपर जन्म लेते हैं। जन्म
लेकर अधर्म का नाश करते हैं और धर्म की उन्नति के लिए कुछ कार्य करते हैं । यह मान्यता योग्य नहीं है, वह इस पद से साबित होता है ।