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सूत्र संवेदना - २
लिए चूलिका की रचना की जाती है । ऐसी चुलिकाओं से जैनागमरूपी सागर भी अत्यंत सुंदर लगता है ।
गुरुगम-मणी-संकुलं : सागर को रत्नाकर कहा जाता है क्योंकि उसकी गहराई में अनेक प्रकार के बहुमूल्य एवं नयनरम्य रत्न पड़े हैं। उसी प्रकार जैनागमरूपी समुद्र बड़े आलापकरूपी महामूल्यवान रत्नों से भरा है । जैसे रत्न महासमृद्धि का कारण बनते हैं, वैसे ये आलापक आत्मा की गुणसमृद्धि का कारण बनते हैं, इससे ही जैनागम का मूल्य अमूल्य है।
दूरपारं : विशाल पट के ऊपर बिछे समुद्र का पार कठिनाई से प्राप्त होता है, वैसे अनंत अर्थों से भरे शास्त्रों के रहस्य को प्राप्त करना बहुत मुश्किल है । ___ तीक्ष्ण बुद्धिवाले चौदह पूर्वधर के सिवाय भगवान के शास्त्रों के पार को कोई नहीं पा सकता । चौदह पूर्वधर भी शब्द से प्राप्त अनंत भावों को जानते हैं पर उसके अतिरिक्त जो अनभिलाप्य है वैसे अनंत भावों को वे भी नहीं जानते । अनंत भावों को जानने की शक्ति तो सर्वज्ञ भगवान के सिवाय किसी की भी नहीं होती।
सारं : सार-श्रेष्ठ । भगवान का आगम सभी दर्शनों में श्रेष्ठ है, क्योंकि उसमें आत्मा आदि सभी पदार्थों का, सभी नय से सर्वांगीण वर्णन किया गया है । सभी आस्तिक धर्मों के सिद्धांतों में आत्मा-पुण्य-पाप-परलोक आदि की बातें आती हैं। संसार की असारता और मोक्ष की श्रेष्ठता का वर्णन भी होता है, परन्तु वह कोई एक नय से (एक दृष्टिकोण से) ही होता है दूसरी अनेक दृष्टि से (नय से) उनको देखना बाकी रहता है। इतनी उनकी अपूर्णता है, इस लिए सभी नयों से सभी पदार्थों को परिपूर्ण देखनेवाला जैन सिद्धांत ही श्रेष्ठ है ।
वीरागम-जलनिधिं सादरं साधु सेवे - वीरभगवान के आगमरूप समुद्र की मैं सम्यग् प्रकार से सेवा करता हूँ।