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जयवीयराय सूत्र (प्रार्थना सूत्र) १७५ इष्टफल-सिद्धिः, लोकविरुद्ध-त्यागः, गुरुजन-पूजा, परार्थकरणं, शुभगुरु-योगः, आभवम् अखण्डा तद्वचन-सेवना च भवतु ।।१-२।।
हे वीतराग ! हे जगत् के गुरु ! आपकी जय हो । हे भगवंत ! आपके प्रभाव से मुझे भवनिर्वेद, मार्गानुसारिता, इष्टफल की प्राप्ति, लोकविरुद्ध कार्य का त्याग, गुरुजन की पूजा, परार्थकरण, सुगुरु का योग और उनके वचन की सेवा मोक्ष न मिलें, तब तक अखंडित प्राप्त हों ।।१-२।।
वीयराय ! जइ वि तुह समये नियाण-बंधणं वारिजइ । तह वि मम भवे भवे तुम्ह चलणाणं सेवा हुन्ज ।।३।। वीतराग ! यद्यपि तव समये निदान-बन्धनं वार्यते । तथापि मम भवे भवे तव चरणयोः सेवा भवतु ।।३।। हे वीतराग ! यद्यपि आपके शास्त्र में नियाणा करने का निषेध किया गया है, फिर भी मुझे भवोभव आपके चरणों की सेवा प्राप्त हो ।।३।। नाह ! तुह पणाम-करणेणं मह दुक्ख-क्खओ, कम्मक्खओ । समाहि-मरणं च बोहि-लाभो अ एअं संपजउ ।।४।। नाथ ! तव प्रणाम-करणेन मम दुःख-क्षयः, कर्म-क्षयः । समाधिमरणं च बोधि-लाभश्च एतद् सम्पद्यताम् ।।४।। हे नाथ ! आपको प्रणाम करने से मुझे दुःख का क्षय, कर्म का क्षय, समाधिमरण और बोधि का लाभ प्राप्त हो ।।४।।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं शासनं जयति ।।५।।
सभी मंगलों में मांगल्यभूत, सभी कल्याणों के कारणभूत, सभी धर्मों में प्रधानभूत ऐसा जैनशासन जय प्राप्त करें ।।५।।