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संदर्भ ग्रंथ सूचि
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बेइन्द्रियादि जीव हैं, वे त्रस जीव हैं । इन तीन प्रकार, के जीवों की भी यथाशक्ति प्रयत्न से रक्षा करने का, इस बोल द्वारा साधक संकल्प करता है।
भगवान की सर्व आज्ञा में अपने और पर के प्राणों की सुरक्षा में समाई है। छः काय जीवों की रक्षा के परिणाम से, जीवों के साथ मैत्री का भाव प्रगट होता है, हृदय करुणा भाव से भर जाता है एवं 'आत्मवत् सर्व भूतेषु' (सर्व जीवों के प्रति आत्मसमान परिणाम) का भाव पैदा होता है ।
इस तरीके से मुहपत्ती के बोल के रहस्य को जानकर, उन भावों से हृदय को भावित कर यदि मुहपत्ती प्रतिलेखन की क्रिया करने में आए, तो अल्प समय में आत्मा के उपर लगे हुए कर्म, अनादिकालीन कुसंस्कार नाश हो जाते हैं एवं आत्मा निर्मलता को प्राप्त कर सकती है ।