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इरियावहिया सूत्र
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सूत्र बोलना जरूरी है। इस तरह पाप से बचने के लिए, सावधानी रखने के लिए इरियावहिया की क्रिया की जाती है ।
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इसके अलावा एक क्रिया में से दूसरी क्रिया में जाते हुए एवं स्वाध्याय या ध्यानादि शुरु करने के पूर्व इरियावहिया करने हेतु भी इस सूत्र का उपयोग होता है ।
जिज्ञासा : एक क्रिया से दूसरी क्रिया में जाने से जीव की विराधना कहाँ होती है ? अथवा स्वाध्याय, ध्यान वगैरह करने के पूर्व जीव की विराधना न भी हुई हो, तो भी यह सूत्र क्यों बोला जाता है ?
तृप्ति : हमने शुरुआत में ही देखा कि जैसे ईर्यापथ का अर्थ आने जाने का मार्ग होता है, वैसे ईर्यापथ का दूसरा अर्थ मोक्षगमन का मार्ग भी होता है । रास्ते में आने जाने पर हुई जीवों की विराधना की क्षमापना के लिए जैसे यह सूत्र बोला जाता है, वैसे सम्यग्दर्शन, ज्ञान एवं चारित्ररूप जो मोक्षमार्ग है, उसमें रहे हुए साधक को जो भी अशुभ भाव आए हों, तो उनका भी प्रायश्चित्त इस सूत्र द्वारा किया जाता है ।
इसके अलावा, एक क्रिया से दूसरी क्रिया में जाने पर जो इरियावहिया करते हैं, वह आगे की जानेवाली क्रिया में कोई विराधना न हो जाए, ऐसा दृढ़ प्रयत्न बनाये रखने के लिए भी करते हैं । पूर्व क्रिया में हुई विराधना को याद करके उसका प्रतिक्रमण करके, प्रारंभ की जानेवाली क्रिया में ऐसी कोई विराधना न हो, ऐसा सतत उपयोग रह सके, इसलिए भी इरियावहिया की क्रिया करनी होती है ।
मन से अशुभ योग का प्रवर्तन मुख्यतया स्वप्राण को पीडा देता है एवं वचन काया की अनुचित प्रवृत्ति मुख्यरूप से पर के प्राणों को पीडा देने वाली होती है । इन दोनों अनुचित प्रवृत्तियों से अशुद्ध बनी आत्मा को इरियावहिया द्वारा शद्ध किया जाता है ।