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________________ हरियावहिया सूत्र सर्व धर्मों का मूल समता है एवं उस समता की प्राप्ति का उपाय सामायिक है । इसलिए गुरुवंदन के लिए जरूरी सूत्रों को समझने के बाद अब हम सामायिक की क्रिया में उपयोगी सूत्रों का विचार करेंगे । सूत्र परिचय : 'इरियावहिया' शब्द से प्रारंभ होनेवाले इस सूत्र को इरियावहिया सूत्र कहते हैं। इसका दूसरा नाम 'इरियापथ प्रतिक्रमण सूत्र' भी है । ईर्या अर्थात् चर्या। चर्या अर्थात् गमनागमन की क्रिया अथवा जीवनचर्या । गमनागमन करते हुए अथवा जीवन का कोई भी व्यवहार करते हुए जीवहिंसादि पाप हुए हों, तो उन पापों का प्रतिक्रमण इस सूत्र द्वारा किया जाता है । रास्ते पर चलते हुए अथवा साधु या श्रावक संबंधी कोई भी क्रिया करते हुए यदि किसी जीव की विराधना हो जाय, तो उसे खमाने के लिए याने उसकी क्षमा मांगने के लिए एवं सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवंदनादि क्रिया के प्रारंभ में इस सूत्र का उपयोग होता है । हिंसा करने से जीव के साथ वैर उत्पन्न होता है, चित्त में उस जीव के प्रति अमैत्रीरूप विषम भाव रहता है । जब तक हिंसा द्वारा बने हुए इस विषम भाव की सच्चे हृदय से क्षमापना नहीं होती, तब तक जीव के साथ स्नेह का परिणाम हो ही नहीं सकता एवं जीव के प्रति मैत्रीभाव रूप स्नेहपरिणाम के बिना धर्म का प्रारंभ या धर्म का विकास हो ही नहीं सकता ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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