SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। १०. आत्मकल्याण में मंदिर मूर्ति मुख्य साधन है । यथारुचि सेवा पूजा करना जैनों का कर्तव्य हैं । चाहे द्रव्यपूजा करें एवं भावपूजा पर पूज्य पुरुषों की पूजा अवश्य करें। ११. जहां तक जैन-समाज मंदिर मूर्तियों का भाव भक्ति से उपासक था वहां तक आपस में प्रेम, स्नेह, ऐक्यता, संघ सत्ता और जाति संगठन तथा मान प्रतिष्ठा, तन, मन एवं धन से समृद्ध था। १२..आज एक पक्ष तो जिन तीर्थंकरो का सायं प्रातः नाम लेता है, उन्हीं की बनी मूर्तियों की भरपेट निन्दा करता है, और दूसरा पक्ष उनकी मूर्ति की पूजा करता है परंतु पूर्ण आशातना नहीं टालने से आज इस स्थिति में पहुंच रहा है। , १३. आज इतिहास में जो जैनियों का गौरव उपलब्ध होता है उसका एक मात्र कारण उनके मंदिरो के निर्माण एवं उदारता ही है । मोक्ष का साधन समझ असंख्य द्रव्य इस कार्य में व्यय कर भारत के रमणीय पहाडों और विशाल दुर्गो
SR No.006121
Book TitleHaa Murti Pooja Shastrokta Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy