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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। मानने का करीबन ४५० वर्षों से झगडा चल रहा है और इस विषय में खंडन मंडन की लाखों पुस्तकें छप गई, जिससे शांति के बदले ग्रामोग्राम क्लेश, कुसम्प और अशान्ति फैली, संघ शक्ति और न्याति बन्धन छिन्न भिन्न हुआ, तप तेज फीका पडा और दूसरों को भेद देखने का अच्छा मौका मिला । जो लोग हमारे आधीन थे वे ही आज हमको हर प्रकार से दबा रहे हैं यह सब घर की फूट का ही कटु फल है ।
जमाने ने अपना प्रभाव डाला । उभय पक्ष ने यह विचार कर लिया के जिस विषय का हमारे आपस में विचार भेद है उसको एक किनारे रख दें और जिस बात में हम दोनों पक्ष सहमत है उसका प्रचार करने में हम एक बन जावें । इसी ध्येय को लक्ष्य में रख उभय पक्ष के मुनियोंने सप्रेम एक पाट पर बैठ के व्याख्यान देकर जनता को अपनी वात्सल्यता का परिचय कराया । इस प्रवृत्ति का प्रभाव उभय पक्ष के उपासकों पर भी कम न हुआ । उन लोगों की अशान्ति मिटकर आपस में एक्यता बढ़ने लगी और भविष्य में कई