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हाँ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है ।
लिखना, काम पड़ने पर शास्त्रार्थ के लिये तैयार रहना, हंमेशां व्याख्यान देना, कई मन्दिरों की आशातना मिटा के पुनः प्रतिष्ठौ करवाना, इतना ही नहीं पर आप समय २ तीर्थों की यात्रा और अन्य भव्यों के यात्रार्थ संघ निकलवाना आदि समाज और धर्म कार्य आपश्रीने बडी योग्यता और उत्साहपूर्वक किये और करवाये । फिर भी आपके सहायक कौन ? जहाँ तन धन की प्रचूरता से सहायता मिलती है वहाँ कार्य करना आसानी है पर मारवाड़ जैसे शुष्क प्रदेश में तो इन दोनों बातों का प्रायः अभाव सा ही है । तथापि आत्मार्पण करनेवाले पुरुषार्थी महात्माओं के लिए सब कुछ बन सकता है ।
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मुनिश्री की वृद्धावस्था - शरीर शिथलता होने पर भी आपका प्रकाशन कार्य आज पर्यन्त चालु ही है । हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं और चाहते हैं कि एसे परोपकारी महात्मा चिरायु हों और हम भूले भटकों को सद्मार्ग की राह बतला कर मरुभूमि का उद्धार करते रहें । अस्तुः
आपश्री का चरण किंकर दफ्तरी जवाहरलाल जैन