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हाँ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है ।
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सकते हैं ?
उत्तर : ऐसा कोई मनुष्य नहीं है कि वह पत्थर क उपासना करता हो कि हे पाषाण ! मुझे संसार सागर से पार लगाईए, किन्तु वे तो मूर्ति में प्रभु गुण आरोपण कर एकाग्रचित्त से उसी प्रभु की उपासना व प्रार्थना करते हैं कि. नमोत्थुणं कह कर परमात्मा के गुणों का ध्यान में स्मरण करते हैं । पर सूत्रों कि पृष्ठ तो जड हैं, आप उन जड पदार्थ से क्या ज्ञान हासिल कर सकते हैं, यह स्वतः समझ लीजिये ।
प्रश्न ३५ : मंदिर तो बारहवर्षी दुष्काल में बने हैं, अतः यह प्रवृत्ति नई है ?
उत्तर : बारह वर्षी दुष्काल कब पडा था आप को यह मालूम हैं ?
सुना जाता है कि १००० वर्ष पहले बारह वर्षी दुकाल पडा था ?
सुना हुआ ही कहते हो या स्वयं शोधखोज करके