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हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है । है जिससे वह भी वन्दनीय हो जाती है।
प्रश्न ३३ : सिलावट के घर पर रही नई मूर्ति की आप आशातना नहीं टालते और मन्दिर में आने पर उसकी आशातना टालते हौ । इसका क्या कारण है ?
उत्तर : गृहस्थों के मकान पर जो लकडी का पाट पडा रहता है उस पर आप भोजन करते हैं, बैठते हैं, एवं अवसर पर जूता भी रख देते है, परंतु जब वही पाट साधु अपने सोने के लिये ले गए हो तो आप उसकी आशातना टालते हो । यदि अनुपयोग से आशातना हो भी गई हो तो प्रायश्चित लेते हो । इसका क्या रहस्य है ? जो कारण तुम्हारे यहां है वह हमारे भी समझ लीजिये । मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होने से उसमें दैवी गुणों का प्रादुर्भाव होता है।
प्रश्न ३४ : पाषाण मूर्ति तो एकेन्द्रिय होती है उसकी, पंचेन्द्रिय मनुष्य पूजन करके क्या लाभ उठा