________________
हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है।
३१ __उत्तर : जो सच्चे त्यागी है वे दुसरों से बनाये भोगी नहीं बन सकते, यदि बनते हों तो तीर्थंकर समवसरण में रत्नखचित सिंहासन पर विराजते हैं पीछे उनके भामण्डल (तेजोमंडल) ऊपर अशोक वृक्ष, शिर पर तीन छत्र और चारों और इंद्र चामर के फटकारे लगायें करते हैं । आकाश में धर्मचक्र एवं महेन्द्रध्वज चलता है तथा सुवर्ण कमलों पर वे सदा चलते हैं । ढींचण प्रमाण पुष्पों के ढेर एवं सुग्रधित धूप का धुंआ चतुर्दिश फैलाया जाता है, कृपया कहिये, ये चिन्ह भोगियों के है या त्यागियों के ? यदि दूसरे की भक्ति से त्यागी भोगी बन जाय तो फिर वे वीतराग कैसे रहें ? बात तो यह है कि भावुकात्मा जिनमूर्ति का निमित्त लेकर वीतराग की भक्ति करते हैं इससे इनके चित्त की निर्मलता होती है और क्रमशः मोक्ष-पद की प्राप्ति भी हो सकती है।
प्रश्न १४ : मन्दिरों में अधिष्ठायक देवों के होते हुए भी चोरियाँ क्यों होती हैं ?