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________________ २४ हाँ ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है । स्वयं तो (अक्षर) मूर्ति को मानना और दूसरों की निन्दा करना यह कहां तक न्याय है ? प्रश्न ६ : कोई तीर्थंकर किसी तीर्थंकर से नहीं मिलते है पर आपने तो एक ही मन्दिर में चोबीसों तीर्थंकरो को बैठा दिया। उत्तर : हमारा मन्दिर तो बहुत लम्बा चौडा है उसमें तो चौबीसों तीर्थंकरों की स्थापना सुखपूर्वक हो सकती है। राजप्रश्री सूत्र में कहा है कि एक मन्दिर में 'अठसयं जिणपडिअं' पर आप तो पांच इंच के छोटे से एक पन्ने में ही तीनों चौबीसी के तीर्थकर की स्थापना कर रखी है और उस पन्ने को पुस्तक में खुब कसकर बांध अपने सिर पर लाद कर सुखपूर्वक फिरते हैं । भला क्या इसका उत्तर आप समुचित दे सकेंगे ? या हमारे मन्दिर में चौबीसों तीर्थंकरो का होना स्वीकार करेंगे ?
SR No.006121
Book TitleHaa Murti Pooja Shastrokta Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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