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हाँ! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है ।
उत्तर : मूर्ति का अर्थ है, आकृति ( शकल) सूत्र भी स्वर, व्यंजन वर्णो की आकृति (मूर्ति) ही तो हैं ।
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प्रश्न ३ : मूर्ति को तो आप वन्दनं, पूजन करते हो पर आपको सूत्रों का वन्दन पूजन करते नहीं देखा ?
उत्तर : क्या आपने पर्युषणों के अन्दर पुस्तकजी का जुलूस नहीं देखा ? जैनं लोग पुस्तकजी का किस ठाठ से वन्दन पूजन करते हैं ।
प्रश्न ४ : हम लोग तो सूत्रों का वन्दन पूजन नहीं करते है । उत्तर : यही तो आपकी कृतघ्नता है कि सूत्रों को 'वीतराग की वाणी समझकर उनसे ज्ञान प्राप्त कर आत्मकल्याण चाहते हो और उन वाणी की वन्दन पूजन करने से इन्कार करते हो । इसी से तो आपकी ऐसी बुद्धि होती है श्री भगवती सूत्र के आदि में गणधर देवों ने 'णमो