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________________ और केवलज्ञानावरणीय । दर्शनावरणीय (9) : (4) (5) 1. चक्षु दर्शनावरणीय 1.निद्रा, 2.निद्रा-निद्रा 2. अचक्षु दर्शनावरणीय 3.प्रचला 3. अवधि दर्शनावरणीय 4.प्रचला-प्रचला 4. केवल दर्शनावरणीय 5.थीणद्धि मोहनीय (26) 1) 1 मिथ्यात्व मोहनीय + 16 कषाय + 9 नोकषाय 1. अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ 2. अप्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया, लोभ 3. प्रत्याख्यानीय क्रोध, मान, माया, लोभ 4. संप्तवलन क्रोध, मान, माया, लोभ 4x4=16 कषाय हास्य, रति, अरति, शोक, भय जुगुप्सा, पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुसंकवेद = 9 नोकषाय इस प्रकार (1+16+9) कुल 26 अन्तराय (5) :- दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय । (आ.) अघाती कर्म (37) वेदनीय (1) :- अशाता वेदनीय गोत्र (1):- नीच गोत्र आयुष्य (1) : नरकायु नाम कर्म (34):स्थावर दशक (10) :- स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अपयश । प्रत्येक (1):- उपघात पिण्ड प्रकृति (23) :- 2 गति :- तिर्यंचगति, नरकगति 4 जाति :- एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय (74
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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