SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाप कर्म के कटु विपाक 1. मूर्खपणा, अंधापन, कृपणता, दरिद्रता ये क्रमश: ज्ञानावरणीय, दर्शानावरणीय, दानान्तराय, लाभान्तरय कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं । 2. भोग्य, उपभोग्य-भोजन, वस्त्रादि सामग्री मिलने पर भी भोगान्तराय और उपभोगान्तराय कर्म के उदय से जीव उन सामग्रियों का भोग उपभोग नहीं कर पाता । 3. सांसारिक, सामाजिक और धार्मिक कार्यों में शारीरिक शक्ति होने पर भी जीव वीर्यान्तराय के उदय से प्रवृत्ति नहीं कर पाता । 4. आधि, व्याधि, उपाधि, चिंता, संताप, अशान्ति आदि अनेक प्रकार के दुःख अशाता वेदनीय कर्म के उदय से आते हैं। 5. नीच कुल में जन्म, लोगों से तिरस्कार नीच गोत्र के उदय से प्राप्त होता है । 6. अधर्म में धर्म की, धर्म में अधर्म की ऐसी विपरीत बुद्धि और मान्यता मिथ्यात्व मोहनीय कर्म से होती है । आत्मा का सबसे कट्टर दुश्मन यही है । जो सत्य को जानने में और पाने में बाधा करता है। 7. क्रोध, मान, कपट, लोभ, मत्सर, शोक, उद्वेग आदि तथा जातीय-संज्ञा ये सभी दुष्ट भावनाएँ और दुष्ट प्रवृत्तियाँ मोहनीय कर्म के उदय से होती हैं। 8. नरक गति के उदय से जीव को नरक में उत्पन्न होना पड़ता है । नरकानुपूर्वी नरक में उत्पन्न होने के स्थान पर ले जाती है । नरकायुष्य जीव को नरक की स्थिति में अपनी निश्चित मुद्दत तक पकड़ कर रखता है । किये गये क्रूर पापों की सजा वहाँ जीव को भुगतनी पड़ती है 9. कुरुप, बेस्वाद, दुर्गन्ध, कठोर और हिनादिक अंग वाला शरीर मिलना ये भी पाप (अशुभ नाम) कर्म की ही लीला है । 10. दौर्भाग्य, अपयश, कठोर स्वर, अप्रियता आदि की प्राप्ति अशुभ नाम कर्म के उदय से होती अज्ञानता के कारण जीव हँसते-हँसते पाप कर्म करता है, परन्तु जब उसका फल उदय में आता है, तब रोते रहने पर भी वह नहीं छूटता है। पाप से बचो, और पुण्य करो; यही दुःख से छूटने का और सुख पाने का सही मार्ग है। पाप के 82 भेद (अ.) घाती कर्म :- (45) ज्ञानावरणीय (5) :- मतिज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मन:पर्यवज्ञानावरणीय 73
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy