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________________ 11. साधारण - यह वनस्पति का भेद है । इसके एक शरीर में अनंत जीव होते हैं । निगोद भी इसी में आता है । लक्षण-जिस वनस्पति की नसें-सांधे गुप्त हो, तोड़ने से बराबर टुकड़े होते हो वगैरह, जैसे कि - आलु, गाजर, अदरक । 12. प्रत्येक - जिसके एक शरीर में एक जीव होता है । जैसे कि - फल-फूल, मिट्टी वगैरह । 13. एकेंद्रिय -- एक इन्द्रिय-चमड़ीवाले जीव । जैसे पृथ्वी, पानी, अग्नि वगैरह । 14. बेइन्द्रिय - दो इन्द्रियाँ-चमड़ी और जीभ वाले जीव । जैसे - शंख, कोड़ी, कृमि वगैरह । 15. तेइन्द्रिय - तीन इन्द्रियाँ - चमड़ी, जीभ एवं नाकवाले जीव । जैसे - चींटी, मकोड़े वगैरह । 16. चउरिन्द्रिय - चार इन्द्रियाँ - चमड़ी, जीभ, नाक एवं आँखवाले जीव । जैसे भमरा (भौरां), मक्खी, बिच्छू वगैरह। 17. पंचेन्द्रिय - पाँच इन्द्रिय - चमड़ी, जीभ, नाक, आँख और कान वाले जीव । जैसे कि हाथी, सर्प, ___ मछली, देव, नारक, मनुष्य वगैरह । 18. समूर्छिम - किसी निमित्त बिना अपने आप उत्पन्न होने वाले जीव । ये बिना मनवाले होते हैं । इन्हें असंज्ञि भी कहते हैं। 19. गर्भज - नाता-पिता के संयोग से जन्म लेने वाले जीव । 20. जलचर - पानी में रहने वाले जीव मछली, मगरमच्छ वगैरह । 21. स्थलचर-चतुष्पद - भूमि पर चलते चार पैर वाले जीव । जैसे हाथी, घोड़ा, गाय वगैरह । 22. स्थलचर-भुजपरिसर्प - जिनके आगे के दो पैर, हाथ का भी काम करते हैं । जैसे बंदर, नकुल (Mangoose) वगैरह। 23. स्थलचर-उरपरिसर्प - पेट से चलनेवाले जीव । जैसे सर्प, अजगर वगैरह । 24. खेचर - आकाश में उड़नेवाले जीव । जैसे पोपट, कोयल, मोर । 25. संज्ञि - मनवाले जीव । (1) कर्मभूमि : पांच भरत, पांच ऐरावत एवं पांच महाविदेह क्षेत्र के मानव । जहाँ असि (हथियार)मसि (लेखनी) एवं कृषि (खेती) से जीवन व्यवहार चलता हो वह कर्मभूमि। मोक्षमार्ग के रहस्य को समझकर जहाँ से चारित्र ग्रहण कर मोक्ष में जा सकते हों, साथ ही जहाँ पर तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि महान् नरपुंगवों का जन्म होता है और जिस भूमि में योगसाधना करके निर्वाण-पद प्राप्त कर सकते हैं वह कर्म भूमि। (2) अकर्मभूमि: जहाँ असि, मषि, कृषि से कोई व्यवहार न होता हो, जहाँ के मानव कल्पवृक्षादि के फल खाते हों । युगलिक (जुडवा-पुरूष एवं स्त्री) रूप में एक ही साथ जन्म एवं मृत्यु होती है । जंबुद्वीप में 6, धातकी खंड में 12, पुष्करार्ध द्वीप में 12 इस तरह कुल मिलाकर इस के 30 भेद निम्नानुसार है । 53
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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