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________________ 3. रामचन्द्रजी ने अपने पिताजी दशरथ राजा का वचन भंग न हो उस भावना से राज्य वैभव का त्याग करके वनवास स्वीकारा था। 4. भीष्म पितामह ने अपने पिताजी की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का स्वीकार किया था। 5. 14 विद्या के पारंगत आर्यरक्षितसूरि म.सा. ने अपने माताजी की खुशी के लिए स्मस्त संसार के भौतिक सुखों का त्याग करके 14 पूर्व का अध्ययन करने हेतु चारित्र अंगीकार किया था। 6. राज गोपीचन्द्र ने अपनी माताजी की खुशी के लिए राज्य और रानियों का त्यग कर संन्यास स्वीकारा था। ___7. कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य म.सा. अपने माता साध्वीजी म.सा. को अंतिम समय आराधना में सवा करोड़ नवकार गिनने का वचन दिया था। ___8. सुलस ने अभयकुमार की प्रेरणा पाकर पिताजी का हिंसामय कसाई का धंधा छोड़कर पिताजी को भी पापमय धंधा छुडवाने का और तप मय अंतिम समय में समाधि देने का भरचक प्रयत्न किया था। 9. माता-पिता के वही सच्चे पुत्र है जो उनकी लोकविरूद्ध और धर्मविरूद्ध न हो ऐसी सभी अच्छी बातो को माने। अगर अपने माता-पिता कभी लोकविरूद्ध और धर्मविरूद्ध कोई बात/आचरण करे तो उनको समझाकर सुधारे वैसे पुत्र माता-पिता के सच्चे ही नहीं परन्तु महान पुत्र है । उनसे माता-पिता का गौरव और पुण्य दोनो बढ़ता है । हमें सच्चे ही नहीं परन्तु महान पुत्र बनना है । अतः कम से कम इतना मन में संकल्प करे की हम कभी हमारे माता-पिता को हमसे अलग नहीं करेंगे । हम माता-पिता को हमारे साथ रखेंगे और एक इससे भी श्रेष्ठ संकल्प यह करे - 1-माता-पिता से हम कभी भी अलग नहीं होंगे, हम हमेशा माता-पिता के साथ रहेंगे। 2-उनकी बारी नहीं डालेंगे, हम ही क्रमशः उनके पास जाकर रहेंगे। 3-उनको वृद्धाश्रम में कभी नहीं भेजेंगे । 4-हम उनकी मिल्कत का बंटवारा सामने से नहीं करवाएंगे। 5-वह सामने से जो देंगे उसको उन्हीं के हाथों से परोपकार आदि कार्यों में लगवा देंगे। 6-हम रोज उनके पास 1 घंटा बैठेंगे और उनसे धर्म चर्चा करेंगे, धार्मिक नैतिक कथाए सुनेंगे । 7-माता-पिता के परम उपकारी ऐसे हमारे दादा-दादी, नाना-नानी के पास भी हम उनका अनुभव ज्ञान ग्रहण करेंगे। 8-उनकी भी सेवा-सुश्रुषा करेंगे, उनके साथ भी समय समय धार्मिक, नैतिक चर्चा-विमर्शना करेंगे । 9-टी.वी. से ज्यादा समय माता-पिता, दादा-दादी के साथ बिताएंगे । और हाँ, उनकी सभी जरूरते पूरी कर देना ही काफी नहीं है, बल्कि रोज उनसे स्नेह से बात करना, टाइम देना यह भी जरूरी है, क्योंकि हर चीज में पैसे से ही पूर्ति नहीं की जा सकती है। प्रेम-स्नेह का काम स्नेह से ही होता है - पैसे से नही। 50
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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