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________________ ऐसा कहकर गोचरी बहरानी चाहिए । 3. गोचरी बहराने के लिए सर्वप्रथम पाटला रखें, उस पर थाली रखकर उसमें गुरु भगवंत पात्रा रखें तब उन पात्रों को भी हाथ जोडे और उसके पश्चात भोजन की वस्तुएँ बहरानी चाहिए । 4. 5. घर के छोटे बड़े सभी व्यक्तियों को बहराने का लाभ लेना चाहिए । सुपात्रदान श्रद्धापूर्वक, भक्तिपूर्वक एवं स्वार्थ रहित करना चाहिए जैसे कि शालिभद्र के जीव संगम ग्वाले ने भक्तिभाव पूर्वक साधु महाराज को खीर बहराकर शालीभद्र की रिद्धि सिद्धि पाई और वह अंत में मोक्ष जाएगा । उसकी कथा संक्षेप में इस प्रकार है: -- गुरु भगवत के पूर्वभव में शालीग्राम में रहने वाली धन्या नाम की एक दरिद्र स्त्री थी । वह उदर पूर्ति हेतु संगम नाम के अपने पुत्र को लेकर राजगृह नगर में आकर बसी और दूसरों का कामकाज करने लगी । संगम भी गाँव के ढोरों को चराने लगा । एक दिन कोई पर्व आया तब प्रत्येक घर में खीर बनती हुई देखकर खाने की इच्छा होने पर, संगम ने भी अपनी माता से खीर का भोजन मांगा। माता ने पडोसन द्वारा दिए गए दूध इत्यादि से खीर बनाकर संगम को थाली में परोस कर कहीं बाहर गइ । इतने में मासक्षमण के पारने वाले एक साधु वहाँ गोचरी वहरने के लिए पधारें । उनको देखकर अत्यंत हर्षित होने से उस संगम ने अत्यंत भावपूर्वक सारी खीर मुनि को वहरा दी। बाद में यह विचार करने लगा कि आज साधु रूपी सत्पात्र मुझे प्राप्त होने से मैं अत्यंत धन्य हूँ । इस प्रकार अपने सत्कार्य की मन में अत्यंत अनुमोदना प्रशंसा करने लगा। इस प्रकार अनुमोदना सहित दान बहुत फल देने वाला होता है। I संगम ने दान देकर बहुत पुण्य उपार्जन किया, क्योंकि ब्याज से धन दुगुना होता है । व्यापार से चौगुना होता है। खेत में सौगुना होता है तथा सुपात्र में देने से तो अनंत गुना होता है। तथा संगम ने जो दान दिया वह अत्यंत दुष्कर है क्योंकि दरिद्र होने पर भी दान देना, सामर्थ्य होने पर भी क्षमा रखना, सुख का उदय होने पर भी इच्छाओं को काबू में रखना तथा तरुणावस्था में इंद्रियों का निग्रह करना ये चार अत्यंत कठिन है । साधु भगवंत जाने के बाद संगम की माता आई । उसने थाली खाली देखकर बाकी की खीर भी परोसी । फिर वह विचार करने लगी कि इतनी सारी भूख वाला मेरा पुत्र प्रतिदिन भूखा ही सोता है, ऐसा लगता है । अतः मुझे धिक्कार है। इस प्रकार के स्नेहदृष्टि के दोष से, उसी रात को शुभ ध्यान से मृत्यु पाकर संगम का जीव उसी शहर में गोभद्र सेठ के घर में उसकी स्त्री भद्रा की कुक्षि में परिपूर्ण पकी हुई शालि (डांगर) से भरपुर क्षेत्र के स्वप्न से सूचित पुत्र के रुप में उत्पन्न हुआ । पिता ने उसका नाम शालिकुमार रखा । युवावस्था प्राप्त होने पर उसका विवाह 32 कन्याओं के साथ किया। उसके पश्चात गोभद्र सेठ 34
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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