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________________ मम्मी ! मेरे लिये दिवाली पर पटाखे मत लाना ! क्यों ? पटाखों के पैसे मैं अपने पडोसी के पुत्र मोन्टू को देना चाहता हूँ । ऐसा क्यों बेटा ? मोन्टू कहता था कि उसके पापा को व्यापार-धंधा-नौकरी आदि नहीं है तो फिर वह नए वस्त्र कैसे खरीद पाएगा? अत: पटाखों के पैसे उसे दूँगा ते वह उनसे नए वस्त्र ला देगा । मम्मी ने कहा • यह बात तो अति सुंदर है बेटा । बच्चों ! ऐसे बेटे तो दुनिया में कितने होंगे ? आपको भी ऐसे बेटे बनना है। दिवाली पर्व, आराधना का पर्व है, न कि विराधना का । तो दिवाली और शादी जैसे प्रसंगों पर आतिशबाजी, पटाखे फोडना बंद - T रखना । पटाखें क्यों न फोडे जाएँ ? क्योंकि पटाखे फोडने से छ: काय के जीवों की हिंसा होती है । पटाखों में गंधक (पृथ्वीकाय) का उपयोग होता है। उसे कागज में भरा जाता है । कागज वनस्पति को पानी में भिगोकर बनाया जाता है । पटाखे बनाने और फोडने पर उनकी दुर्गन्ध, प्रकाश और आवाज से अग्नि, वायु, छोटे मच्छर आदि जीवों का नाश होता है । कबूतर, चिडियाओं के अंडे फूट जाते है, पटाखों की अचानक आवाज होने से पक्षी उड जाते हैं, अंधेरे में इधर उधर टकराते है, दु:खी होते है और इलेक्ट्रिक वायर पर बैठने पर शौक लगते ही गंभीर रुप से घायल होकर मर जाते है । बीमार, वृद्ध, छोटे बच्चों को घबराहट होती है, नींद नहीं आती, हृदय गले आदि के रोग होते है। सुलगता हुआ पटाखा, रुई की जीन अथवा लकडी के गोदाम या गरीबों की झोंपडियों पर गिर पडे, तो आग लग जाती है, लाखों की हानि होती है। हजारों लाखों जीव झूर- झूर कर अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते है । पटाखे बनाने के कारखानों और फैक्ट्रीयों में कई बार आग लग जाती है जिसमें कई लोग जल मरते है, जिसका पाप पटाखे फोडने वाले को लगता है। कई बार हम स्वयं भी झुलसकर या जलकर मर जाते है । जलने से कभी अपनी आँखे चली जाती है, हाथ-पाँव को हानि पहुँचे तो हम लूले लंगडे हो जाते है । अपने धन का अपव्यय होता है। अहमदाबाद की एक महिला के पेट में रोकेट घुस गया था और वह महिला बेहोश हो गई थी । I अमेरिका के केलिफोर्निया राज्य के सांताक्रुज विस्तार के नागरिकों ने अपने विस्तार क्षेत्र को हेट फ्री जोन (घृणा विहीन क्षेत्र) बनाने का आन्दोलन शुरु किया । स्थान-स्थान पर बेनर लगाए गए कि घृणा हो ऐसी बेकार वस्तुएँ इस क्षेत्र में लाना प्रतिबन्धित है। हम अंधानुकरण करते हैं, तो ऐसा अनुकरण क्यों नहीं करते ? जैसा बोएँगे वैसा पाएँगे, जैसी करनी वैसी भरनी, अनाज का एक दाना बोने पर सामान्यतः दस गुने मिलते हैं, उसी प्रकार एक जीव को दुःख देने पर न्यूनतम दस गुना दुःख सहन करना पडता है। जैनेत्तर ग्रंथ में तो ऐसी कथा है कि - मार्तंड ऋषि को एक खटमल ने डंक मारा तो ऋषि ने क्रुद्ध 24
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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