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मंदिर में चींटी वगैरह जीव उत्पन्न न हों इसलिए पूरी सावधानी रखें । विधि के बाद फल, नैवेद्य, चावल, पाटला आदि अपने हाथ से ही व्यवस्थित स्थान पर रख दें । यानि यहाँ-वहाँ न गिरे इसका ध्यान रखें। अभिषेक का पानी वगैरह भी पैर में न आवे और गटर में न जाये, इस तरह परठने की व्यवस्था रखें । साफ-सफाई भी पूरी रखें ।
गंभारे में प्रवेश करने की विधि * दूसरी बार (एक या) तीन निसीहि बोल कर, मौन धारण करके, मुख कोश बांधकर गर्भगृह में
प्रवेश करें। * गर्भगृह में मौन धारण करके पूजा करें। मुखकोश बांधने के बाद हाथ धोए और गर्भगृह में प्रवेश करते वक्त दहलीज पर स्पर्श न करें।
प्रभु के उपर का निर्माल्य दूर करने की विधि * सर्व प्रथम निर्माल्य (प्रभुजी के अंग पर के बासी फूल चंदन वगैरह) थाली में लेकर चींटी जैसे
सूक्ष्म जीवों का निरीक्षण कर मोरपंखी से दूर कर दीजिए। * एक शुद्ध वस्त्र को पानी में भिगोकर उससे बरक, बादला, वगैरह दूर करें, अत्यन्त आवश्यक हो तो ही वालाकूची का उपयोग कर सावधानी के साथ चंदन वगैरह दूर करें ।
जल पूजा (अभिषेक) करने की विधि * मुख कोश से नाक और मुख दोनो ढंकना चाहिए। * सर्व प्रथम पंचामृत से अभिषेक करके उसके बाद ही शुद्ध जल से अभिषेक करें। * दोनों हाथों से कलश धारण करके प्रभुजी के मस्तक पर अभिषेक करें, पर नवांगी पूजा की
तरह – हरेक अंग पर अभिषेक न करें। * प्रभु को कलश का स्पर्श न हो एवं कलश हाथ से न गिर जाय उसका खास ध्यान रखें । * अभिषेक का जल नीचे नहीं गिरे तथा पैरों में नहीं आवे, इसका खास ध्यान रखें । * पूजा करते समय अपने वस्त्र प्रभुजी को स्पर्श न करें, उसका खास ध्यान रखें ।
___ अंग लूंछन की विधि * मलमल के कपड़े के उचित प्रमाण के तीन अंग लूछणे रखें । * मंदिर में हर महीने अंगलूछन बदलने की व्यवस्था करें । * मौन धारण करके अंगलूछणा करें एवं प्रतिदिन अंगलूछणे को साफ करें। * देवी-देवताओं के उपयोग में लिये गये अंगलूछणाओं का प्रभुजी के लिये उपयोग न करें। * पाट पोंछने तथा अंग पोंछने के लिये अलग-अलग कपड़े रखे । उनको साथ में ना धोये एवं
अंगूलछने जमीन पर न रखे।
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