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प्रदक्षिणा देने की विधि * हाथ में पूजा की सामग्री लेकर नीचे
देखकर जयणापूर्वक धीमी गति से प्रदक्षिणा
लगाएँ। * मधुर स्वर में प्रदक्षिणा के दोहे बोलते हुए
प्रदक्षिणा दें। * दोनो हाथ जोडकर प्रदक्षिणा दें।। * प्रदक्षिणा नहीं देना या एक ही प्रदक्षिणा देनी
या पूजा करने के बाद प्रदक्षिणा देनी, यह अविधि है।
निम्न चार भावना से प्रदक्षिणा करें * प्रभु को प्रदक्षिणा देने से मेरे भव भ्रमण मिट जायें ।
ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप रत्नत्रयी की प्राप्ति हो । * मंगलमूर्ति के दर्शन होते ही समवसरण में स्थित चतुर्मुखी प्रभु याद करें । * इलि-भमरी न्याय से मैं भी प्रभु तुल्य बन जाऊँ । विशेष : प्रदक्षिणा देते समय मंदिर संबंधि
शुद्धि का ध्यान रख सकते हैं । कभी जरुरत लगे, तो योग्य व्यवस्था भी कर सकते हैं । * प्रदक्षिणा के समय केन्द्र में भगवान होते है। अतः ऐसी भावना करें-''प्रभु मेरे जीवन के केन्द्र में भी आप पधारे।
स्तुति बोलने की विधि * प्रदक्षिणा के बाद किसी को प्रभु दर्शन में अंतराय न पड़े, इसलिये पुरुष प्रभु के दाहिनी तरफ
(जिमनी) एवं स्त्री बांयी तरफ (डाबी) खड़े होकर स्तुति करें । हाथ जोड़कर कमर से नीचे तक झुककर प्रभुजी को प्रणाम करें, ऐसा करने से अर्धावनत प्रणाम की विधि पूर्ण हो जाती है।
मुख कोश बांधने की विधि अष्टपड वाला मुखकोश बांधे ।
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दुपट्टे की आठ तहे करके मुखकोश वाय