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________________ । स्वीकार्य है । जंगल हो या श्मशान, मकान हो या मैदान-सूर्यास्त के समय मैं अवश्य ही प्रतिक्रमण करता महणसिंह की धर्मनिष्ठा से प्रसन्न बने हुए बादशाह ने आदेश निकाला कि महणसिंह प्रतिक्रमण करने बैठे तब एक सौ सैनिक उन्हें संरक्षण प्रदान करें । वह रिसाला वापस दिल्ली लौटा । एक बार बादशाह ने महणसिंह के नियम की दृढता की कसौटी करने के लिए झूठे अपराध में उन्हें पकडवा कर हाथ-पाँव में बेडियाँ पहिनाकर अंधेरे कारावास में डाल दिया । बाहर सशस्त्र सुभट पहरा लगाते थे। बादशाह को देखना था कि महणसिंह अब क्या करते हैं ? अपने नियम का पालन कैसे करते है? महणसिंह ने कैदखाने के प्रहरी को कहा "प्रतिक्रमण के समय तू यदि मेरी बेड़ियाँ खोल दे तो तुझे मैं नित्य दो स्वर्ण मुद्राएँ दूंगा । इस प्रकार महणसिंह बिना कष्ट से एक माह तक प्रतिक्रमण करता रहा। कही से बादशाह को इसका पता चल गया। तब वे महणसिंह की निष्ठा और श्रद्धा से प्रभावित हुए। महणसिंह को उन्होंने कारावास से मुक्त किया और उनका सन्मान करके उन्हें राज्य का कोषाध्यक्ष बनाया। बच्चों ! आपको भी इस महणसिंह के दृष्टांत से प्रेरणा लेकर प्रतिक्रमण नित्य अवश्य करना चाहिए । महणसिंह तो जंगल और कारावास में भी प्रतिक्रमण करना नहीं चूकते थे, तो आपको कम से कम उपाश्रय अथवा घर में अवश्य प्रतिक्रमण करना चाहिए । प्रतिक्रमण में रखने की सावधानी : विशेष तो पर्युषण के आठ दिनों के प्रतिक्रमण में तथा उसमें भी संवत्सरी के प्रतिक्रमण में कई लडके आदि हँसते रहते हैं, हँसी मजाक करते हैं, तथा अनेक प्रकार के उपद्रव करके अन्य जनों को प्रतिक्रमण करने में अंतराय-बाधा पहुंचाते हैं । ऐसे लोग देव-गुरु-धर्म की आशातना करके बहुत बड़ा और अत्यंत कष्टदायक पाप कर्म बाँधते है और ऐसा उपद्रव-शैतानी करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध भी होता है, अत: बच्चों ! आपको यह बात विशेष रुप से ध्यान में रखनी है कि प्रतिक्रमण में ऐसी शैतानी मस्ती न करें । दूसरे जो भी ऐसा करेंगे, वे भरेंगे, परंतु हमें तो सावधना रहना है। प्रतिक्रमण न हो सके तो साधु म.सा. के उपाश्रय में जाकर गुरुवंदन करें । दोषों की आलोचनाक्षमापना करके पच्चक्खाण लें । धर्म शास्त्रों का श्रवण-साधुओं के शरीर की शुश्रुषा - भक्ति करें । रात्रि में गुरु भगवंतों को अब्भूढिओ खामके वंदन नहीं किया जाता, परंतु दो हाथ जोडकर, मस्तक झुकाकर मात्र 'मत्थएण वंदामि" और वापस लौटते समय "त्रिकाल वंदना' कहा जाता है। बच्चों ! आप सायंकाल में प्रतिक्रमण न कर सको तो सामायिक अवश्य करना, वह भी न कर सको तो "सात लाख" सूत्र बोलकर संक्षेप में पाप का प्रायश्चित करना न भूलें । प्रतिक्रमण-सामायिक करने से क्या लाभ होता है ? इसका वर्णन आपको पूर्व में पहले ही समझा दिया गया है । जैनेत्तर ग्रंथों में भी सायं संध्यावंदन करना चाहिए ऐसी मान्यता है । भागवत पुराण में तो यहाँ तक लिखा है, कि जिसे संध्या वंदन का ज्ञान नहीं है, जो संध्या वंदन नहीं करते, ऐसे लोग जीवित अवस्था में शुद्रवत् है और मरने के पश्चात् कुत्ते की योनि में जन्म लेते हैं। 108
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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