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________________ बह रहा था । नदी का पानी समुद्र को मिलने के लिए मानों उत्सुक बना हो, इस प्रकार बहुत वेग से बह रहा था । ऐसे डरावने समय में देवपाल नदी के किनारे के एक भाग पर गायों को चराने के लिए ले गया था । उस समय गायें नदी के तट के आसपास घास चर रही थी। नदी का जल प्रवाह जोर से आवाज करता हुआ बह रहा था । देवपाल लकडी के सहारे एक ओर खडा-खडा बरसात के दृश्यों को देख रहा था । इतने में पानी जोरदार बहने से नदी के किनारे का एक भाग एकदम गिर गया । देवपाल की नजर उस ओर पडी । दूर से चमकदार वस्तु को देखा तो उसके पास गया । उसके ऊपर की धूल हटाई तो उसमें युगादिदेव आदिनाथ की जिन प्रतिमा को देखा । आनंद से उसके शरीर के रोम-रोम खडे हो गए । वह मन में अपनी आत्मा को धन्य तथा पुण्यशाली मानने लगा।" अहो ! कैसा सुंदर मेरा भाग्य ! वन में यकायक मुझे श्री जिनेश्वर भगवान के दर्शन हुए । संसार समुद्र को तैरने के लिए मुझे उत्तमोत्तम साधन आसानी से मिल गया । अब तो इस देवाधिदेव को किसी अच्छे स्थान पर स्थापित करूँ । ऐसा संकल्प करके नदी के किनारे पर ही एक पर्णकुटी बनाकर उसमें प्रभुजी को बिराजमान किया, फूल इत्यादि से पूजा करके, प्रभु के सन्मुख दृढ निश्चय किया, कि जब तक इन तीन जगत के नाथ के दर्शन नहीं करूँ, तब तक मुँह में अन्न या जल नहीं लूँगा। ___फिर तो रोज सुबह नदी में स्नान आदि करके, प्रभुजी का अभिषेक करके, पुष्प फलादि चढाकर देवपाल भोजन करता था। इस प्रकार कितने ही दिन बीत गए । एक बार नदी में फिर पानी बढ़ गया जिससे वह सामने वाले किनारे प्रभुजी की झोपडी में नहीं जा सका और पूजा नहीं हो सकी। खाने के लिए मना करने पर सेठ ने कारण पूछा तो देवपाल ने सेठ को सारी बात बताई तो सेठ को आनंद और धर्मिष्ठ नौकर पर संतोष हुआ । सेठ ने उसको कहा कि " तू अपने घर-दहेरासर में पूजा करके भोजन कर लें जिससे तेरे नियम का पालन हो जाएगा । देवपाल ने मना करते हुए कहा कि मुझे उस नदी किनारे के भगवान की नदी में पर आने से प्रभुजी की पूजा करने देवपाल नहीं जा पाया। 102
SR No.006120
Book TitleJain Tattva Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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