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राजा खड़ा हुआ । सैनिकों ने मशाल के उजाले में राजा के सुंदर प्रभावशाली चेहरे को देखा । 'अरे..यह तो कोई अच्छा आदमी मालूम पड़ता है..!' उन्होंने मुलायम स्वर में राजा से पूछा :
'ओ मुसाफिर, तूने कुछ चोरों को इधर आते जाते देखा क्या? उन्हें बातें करते सुना क्या? क्योंकि कुछ डाकुओं ने मिलकर एक पदयात्री संघ को लूटने का षड़यंत्र बनाया है... इसी जंगल में वे छुपे हैं।'
राजा ने पूछा : 'पर तुम कौन हो ?'
सैनिकों ने कहा : 'यहाँ से दस योजन दूर श्रीपुर नाम का नगर है... वहाँ के राजा का नाम गाधी है । वह राजा जैन धर्म का पालन करता है। उसने हमें उन डाकुओं को पकड़ने के लिये भेजा है.. इसलिये तू यदि कुछ जानता हो तो फटाफट बता दे. ताकि हम उन बदमाशों को पकड़ के ले जायें ।'
राजा सोचता है : 'यदि मैं सच बता दूँ कि सामने के पेड़ों के झुरमुट में चोर छुपे हैं... ये सैनिक उन कुओं को मौत के घाट उतार देंगे। उस हत्या का, हिंसा का पाप मेरे को लगेगा । और यदि नहीं बताता हूँ तो वे डाकू संघ को लूट लेंगे... संघ के यात्रियों को मारेंगे। बड़ा अनर्थ हो जायेगा । तो मैं अब क्या करूँ?'
राजा ने सैनिकों से कहा: पराक्रमी सुभटों, मैंने तो यहाँ किसी चोर को देखा नहीं है.... और चोरों को पकड़ने के लिये तुम्हारा यहाँ पर रुकना मुझे उचित प्रतीत नहीं होता है.... मेरी बात मानो तो जहाँ पर संघ का पड़ाव है... तुम सबको वहीं पहुँच जाना चाहिये । वहाँ संघ के साथ रहकर संघ की रक्षा भलीभांति कर सकोगे । आखिर चोर भी वहीं आयेंगे, यदि वे संघ को लूटना चाहते हैं तो । तुम तुरंत वहाँ पहुँच जाओ..संघ को सुरक्षा मिलेगी... तुम्हें यश मिलेगा और संघ- रक्षा का पुण्य भी मिलेगा ।
मुसाफिर, तेरी बात सही है... हम संघ के पास ही पहुँच जायेंगे। कहकर सैनिक वहाँ से कूच कर
गये ।
वे डाकू पेड़ों की झुरमुट से बाहर आ गये। राजा हंस के पास आये और प्रणाम कर कहा : ओ वीर पुरुष ! तुम्हें तो पता हीं था कि हम इन पेड़ों के पीछे छुपे हुए हैं.... तुमने हमारी बातें भी सुनी ही होगी । फिर भी, तुमने राजा के सैनिकों को हमारे बारे में कुछ नहीं कहा । हमारा पता नहीं दिया । तुमने हम सबको जीवनदान दिया है। तुम हमारे उपकारी आदरणीय बन गये हो। तुम्हारी बुद्धि को भी धन्य है । तुमने संघ को तो बचाया ही .. हमारे भी प्राण बचाये । हम तुम्हारे चरणों में प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से कभी भी चोरी या डकैती के काम नहीं करेंगे ।
चोर अपने रास्ते पर चले गये....राजा ने शांति से विश्राम किया। सुबह में घोड़े पर बैठकर छत्रधर के साथ राजा आगे बढ़ा । अभी तो कुछ रास्ता तय किया था कि अचानक कुछ घुड़सवार सैनिकों का काफिला सामने आया । राजा ने अपना घोड़ा खड़ा रखा । उन सैनिकों के सरदार ने पूछा :
ओ राहगीर.. तूने राजपुरी के राजा हंस को यहाँ कहीं देखा है ?
क्यों भाई तुम्हें उस राजा का क्या काम
।
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