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________________ काल काल का स्वरूप 1. असंख्यात समय = 1 आवलिका 2. 256 आवलिका = 1 क्षुल्लक भव (निगोद का जीव इतने समय में एक भव पूरा करता है) 3. 17 1/2 क्षुल्लक भव = 1 श्वासोच्छ्वास 4. 7 श्वासोच्छ्वास = 1 स्तोक 5. 7 स्तोक = 1 लव 6. 77 लव = 1 मुहूर्त (मुहूर्त=48 मिनट=2 घटिका=3773 प्राण= ____65536 क्षुल्लक भव=1,67,77,216 आवलिका) 7. 30 मुहूर्त = 1 दिन 8. 15 दिन = 1 पक्ष 9. 2 पक्ष = 1 मास 10. 2 मास = 1 ऋतु 11. 3 ऋतु = 1 अयन 12. 2 अयन = 1 वर्ष 13. 84 लाख वर्ष = 1 पूर्वांग 14. 84 लाख पूर्वांग = 1 पूर्व = 70560 अरब वर्ष 15. 1 पल्योपम = असंख्य वर्ष, 16. 10 कोड़ा-कोड़ी पल्योपम = 1 सागरोपम 17. 10 कोड़ा-कोडी सागरोपम = 1 अवसर्पिणी अथवा 1 उत्सर्पिणी 18. अवसर्पिणी+उत्सर्पिणी = 1 कालचक्र, 19. अनंत कालचक्र __= 1 पुद्गल परावर्त पल्योपम : 1 योजन (4800 कि.मी.) लंबा, चौड़ा एवं गहरा एक कूप। उसे सात दिन की उम्र के युगलिक के एक-एक केश के असंख्य टुकड़ों से इस तरह ठसाठस भर दिया जाए कि उसके ऊपर से चक्रवर्ती की विशाल सेना कूच कर जाए तो भी उसके ठोसपन में किंचित् मात्र अंतर न आये। उसमें से सौ-सौ वर्ष के अंतर से केश का एक-एक टुकड़ा निकाले और कूप पूरा खाली हो तब तक जितनी अवधि लगे उस अवधि को सूक्ष्म अद्धा पल्योपम कहते हैं। उससे आयुष्य की गिनती होती है। 86
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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