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________________ एकासना वगैरह में उपयोग में नहीं लिया जा सकता। साधु-साध्वी भगवंत को भी नहीं वोहराया जा सकता। स्थावर जीवों की अचित्तता प्रश्न: स्थावर वस्तु में सचित्त-अचित्तता समझाओ ? उत्तर: स्थावर वस्तु जब तक जीव सहित हो तब तक सचित्त है, फिर अचित्त हो जाती है। प्रश्न: स्थावर वस्तु अचित्त किस तरह होती है ? उत्तर: तीन प्रक र के शस्त्र-संयोग से वस्तु अचित्त होती है। (1) स्वकाय शस्त्र : एक मिट्टी दूसरे प्रकार की मिट्टी के लिए, भिन्न-भिन्न कुएं के पानी परस्पर मिलने प', कुआँ तथा नल का पानी मिश्र होने पर; इसी प्रकार गैस व चूल्हे की अग्नि परस्पर मिलने से एवं अलग-अलग वायु, अलग-अलग वनस्पति परस्पर मिश्रित होने पर एक-दूसरे के लिए शस् बनते हैं अर्थात् एक-दूसरे के घातक बनते हैं। जीवों के मर जाने से वस्तु अचित्त बनती है। लेकिन सम्पूर्णतया अचित्त नहीं बनती है। इसलिए विवेकी सज्जनों के लिए ऐसा मिश्रण करना उचित नहीं है और करने से दोष लगता है। (2) परकाय शस्त्र : एक काय का दूसरे काय के साथ मिश्रण होने से अचित्त होता है। जैसे पानी का अग्नि के साथ संयोग होने से पानी अचित्त बनता है। (3) उभयकाय शस्त्र : दो जाति के मिश्रित पानी को चूल्हे पर चढ़ाना। इसमें पानी परस्पर एवं अग्नि से अचित्त बनता है। E. एकेन्द्रिय के 22 भेद प्रश्न: पानी उबालकर पीना चाहिए इस प्रकार कहा है लेकिन उबालने से तो पानी के जीव मरते हैं? उत्तर: पानी में प्रति समय जीव उत्पन्न होते हैं और मरते हैं। कच्चे पानी में यह क्रिया सतत् (निरंतर) चालू ही रहती है। पानी को उबालने से एक बार तो जीव मर जाते हैं। फिर उसके कालानुसार निश्चित समय तक पानी में जीव उत्पन्न नहीं होते हैं, वह पानी अचित्त रहता है। इसलिए पानी उबालकर पीना चाहिए तथा परिणाम में क्रूरता भी नहीं आती। पृथ्वी, अप्, तेउ, वायु और साधारण वनस्पतिकाय। इन पाँच के 4-4 भेद होते हैं। 1. सूक्ष्म पर्याप्त 2. बादर पर्याप्त 3. सूक्ष्म अपर्याप्त 4. बादर अपर्याप्त 5x4=20 भेद और प्रत्येक वनस्पति में मात्र (1) बादर पर्याप्त (2) बादर अपर्याप्त ये 2 भेद ही हैं, 20+2=22 भेद। * एकेन्द्रिय में पृथ्वी आदि के जो कोई भी उदाहरण दिये गये हैं, वे सब बादर-पर्याप्त के ही जानना। E बेइन्द्रिय शंख, इरल (लट), जोंक, चंदनक, भूनाग (केंचुए), कृमि, पोरा वगैरह। 22 अभक्ष्य में लगभग (65)
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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