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________________ C. जयणा के स्थान 1. पृथ्वीकाय : (माटी आदि) सभी प्रकार की मिट्टी, पत्थर, नमक, सोड़ा (खार) खान में से निकलने वाले कोयले, रत्न, चाँदी, सोना वगैरह सर्व धातु पृथ्वीकाय के प्रकार हैं। नियम :अ) ताजी खोदी हुई मिट्टी (सचित्त) पर नहीं चलना लेकिन पास में जगह हो वहाँ से चलना। आ) सोना, चाँदी, हीरा, मोती, रत्न वगैरह के आभूषण पृथ्वीकाय के शरीर (मुर्दे) हैं। इसलिए उनका जरूरत से ज्यादा संग्रह नहीं करना, मोह नहीं रखना, हो सके उतना त्याग करना। 2. अप्काय (पानी): सभी प्रकार के पानी, ओस, बादल का पानी, हरी वनस्पति पर रहा हुआ पानी, बर्फ, ओले वगैरह अप्काय (पानी के जीव) हैं। नियम : - अ) फ्रिज का पानी नहीं पीना, बर्फ का पानी नहीं पीना एवं बर्फ नहीं वापरना। आ) पानी नल में से बाल्टी में सीधा ऊपर से गिरे तो इन जीवों को आघात होता है। इसलिए बाल्टी को नल से बहुत नीचे नहीं रखना। जिससे पानी फोर्स से नीचे न गिरे। इ) गीजर का पानी उपयोग में नहीं लेना। ई) कपड़े धोने की मशीन में सर्वत्र पानी छानने का और संखारे का विवेक रखना। उ) पाँच तिथि (महीने की) तथा वर्ष की छ: अट्ठाई में कपड़े नहीं धोना ।हमेशा नहाने वगैरह के लिए ज्यादा पानी नहीं वापरना और साबुन का उपयोग शक्य हो तो नहीं करना। ऊ) बार-बार हाथ, पैर, मुँह नहीं धोना। पानी छानने की विधि ___ सुबह में उठकर रसोई घर तथा पूरे घर का बासी कचरा निकालकर उसे सूखी जगह पर परठना (डालना)। बर्तन को बराबर देखकर, उसमें जीव नहीं है, यह निर्णय करने के बाद उसमें धड़े का वासी पानी डालना। फिर घड़े पर गरणा रखकर उसमें थोड़ा पानी डालकर घड़े के पानी को मात्र हेलाकर उसे बाहर निकालना। पुन: पानी छानकर घड़े में लेना और कपड़े अथवा ब्रश से घड़ा धो लेना फिर जहाँ घड़ा रखने की जगह हो, वह बराबर साफ कर लेना, वरना चिकनापन जम जाय तो उसमें निगोद की उत्पत्ति हो जाती है, घड़े के अंदर भी चीकाश अथवा लील-फुग न हो उसका ध्यान रखना । घड़े को स्थान पर रखकर गरणा रखकर पानी भरना। इस प्रकार पूरा पानी छानने के बाद एक बाल्टी में थोड़ा पानी लेकर उसमें गरणे को डुबाकर निकाल लेना और पानी को पानी के रास्ते जाने देना और गरणे को ऐसे ही सुखा देना। (निचोड़ना नहीं) शाम को साबुन लगाकर धोया जा सकता है, गरणा मैला नहीं होने देना। 60
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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