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________________ के समय पूरा भरा रहता है, अब तो हमेशा के लिये चोविहार हाउस बम्बई में चालू हो गया है। यदि मुंबई की लाइफ जीनेवाले व्यक्ति भी चोविहार पाल सकते है तो अन्य शहरों, गांवों में भी लोग मन में निश्चय करे तो निश्चित चोविहार का लाभ ले सकते है। 4. प्रति रात्रिभोजन करते हैं इस कारण बहनों को भी अनिच्छा से रात्रिभोजन करना पड़ता हैं। इस तरह एक के कारण दोनों पाप में पड़ते हैं। इससे अच्छा तो भाइयों को चउविहार चालू कर देना चाहिए, जिससे बहनों को भी चउविहार का लाभ मिल जाये । 5. आज की जिन्सी पीढ़ी में विवाह होने के बाद रविवार को घूमने और होटल में खाने का क्रेज़ बढ़ता चला है। पूरे एक सप्ताह तक पेट भरकर दवाई खा सके इतना कचरा रविवार को भर लेता है । फिर उसकी तबियत सोमवार / मंगलवार को बिगड़ती है, इसका कारण रविवार होता हैं। सप्ताह के सात दिनों में से छः दिन तो मानव सीधा चलता हैं परन्तु रविवार को उसकी चानक चसक जाती हैं। रविवार को रात्रि में 8 से 12 बजे के बीच भारतभर की आधी बस्ती लगभग पागल की स्थिति में रहती हैं। टेम्पररी मेडनेस के बीच मानव खाना, पीना, खेलना और भोग करके अनेक पाप कर लेता हैं। जिसको रविवार के टेम्पररी मेडनेस से अं'र परमानेन्ट बीमारी से बचना होतो ज्यादा नहीं केवल एक प्रतिज्ञा लेनी चाहिये कि, रविवार को रात्रि में घर से बाहर निकलना नहीं । 6. रात्रि में चउविहार का पच्चक्खाण नहीं कर सकते तो मात्र पानी की छूट रखकर तिविहार का पच्चक्खाण कर सकते हैं। रात्रि भोजन त्याग का नियम पालना हो और रात्रि में दवा लेनी पड़े तो दवा के लिये दुविहार का पच्चक्खाण भी कर सकते हैं। पानी और दवा की छूट के लिये पूरी जिंदगी रात्रिभोजन करने की जर भी जरुरत नहीं हैं। B. रात्रि भोजन जैनेतर दर्शन की दृष्टि से परमेत्कृष्ट श्री जिनशासन जितनी सूक्ष्मता भले ही अन्य किसी भी धर्मों में न हो, परन्तु रात्रिभोजन के नरक का नेशनल हाईवे नं 1 कहा गया है, रात्रिभोजन करनेवाले का तप-जप- तीर्थयात्रा आदि सत्कार्य निष्फल हो जाते हैं। तर्क से भी रात्रिभोजन के पाप को सिद्ध करते हैं। लगभग सभी दर्शनकारों ने रात्रिभोजन को पाप बताया हैं । उसका त्याग करने को कहते हैं और उसके त्याग का फल देवलोक बताते हैं । रात्रि भोजन के त्यागी को एक महीने में 15 दिन के उपवास का फल मिलता है । (आजकल के उनके उपवास की तरह नहीं, जिसमें हमेशा से ज्यादा आहार लिया जाता है।) C. रात्रिभोजन - जैनेतर ग्रंथों के आधार पर : जैनेत्र ग्रंथों में रात्रिभोजन के लिए क्या कहा गया है, उसे हम देखने जा रहे हैं। रात्रिभोजन यानि नरक का नेशनल हाईवे नं. 1 45
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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