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6. वंदन - वंदन द्वारा गुरु के प्रति विनय बताना। 7. प्रतिक्रमण - प्रमादवश स्वस्थान से परस्थान में गयी हुई आत्मा को स्वस्थान में लाना, यानी पापों ___ से पीछे हटना। लोक मर्यादा एवं धर्म सिद्धांतो का हमारे द्वारा जाने-अनजाने में अतिक्रमण होता है
उसका निवारण है प्रतिक्रमण। 8. कायोत्सर्ग - ध्यान में लीन रहना। 9. पच्चक्खाण - त्याग-भावना का विकास रखना। 10. पर्व दिनों में पोषध करना - यानी अष्टमी, चतुर्दर्शी आदि दिनों में पोषध करना। 11. दान देना - अपनी शक्ति अनुसार दान देना। 12. सदाचारी बनना - जीवन में औरों के प्रति अपना आचरण निर्मल रखना। 13. तपस्या करना - कर्म बंधन से आत्मा को मुक्त करने हेतु तपस्या करना आवश्यक है। इससे कर्म ___ की निर्जरा होती है। 14. शुद्ध भावना भाना - मैत्री, प्रमोद, कारूण्य व माध्यस्थ भावना का रहस्य जानकर उन्हे अपने ____ आचरण में लाना। सद् संसारी के लिए ये चारों बाते आवश्यक है। 15. स्वाध्याय करना - गुरु के पास धार्मिक अभ्यास करना तथा पवित्र पुस्तकों को पढना, उन पर ___ मनन करना, शंका हो तो गुरू से समाधान पाना। दूसरो को भी प्रेरणा देना। 16. प्रतिदिन नमस्कार मंत्र का यथाविधि जाप करना। 17. परोपकारी बुद्धि रखना - सभी के प्रति सद्भाव रखना। सर्व मंगल की कामना करना। सर्व जीवों
पर उपकार के लिए सदा तत्पर रहना। 18. जयणा का पालन करना - हरेक काम सावधानी पूर्वक करना । बने उतनी दया का पालन करना।
सूक्ष्म अहिंसा के पालन हेतु यह आवश्यक है। इसी का नाम जयणा है। 19. जिनेश्वर की पूजा - नित्य जिनेश्वर की त्रिकाल पूजा करना। 20. जिनेश्वर की स्तुति - श्री जिनेश्वर देव के नाम की नित्य स्तवना करना एवं उनके गुणों का कीर्तन
करना 21. सद्गुरु के गुणों की स्तुति करना - क्योंकि गुरू बिन ज्ञान कभी नहीं मिलता। 22. साधर्मिक वात्सल्य - समान धर्मी भाई-बहनों के प्रति वात्सल्य यानि प्रेम भाव रखना। 23. व्यवहार बुद्धि – व्यवहार शुद्ध रखना यानि प्रामाणिक रहना। 24. तीर्थ यात्रा - कुटुंब परिवार के साथ तीर्थ यात्रा करना। 25. रथ-यात्रा - जिनेश्वर देव की रथ यात्रा का आयोजन करना। 26. कषाय का त्याग करना - कष+आय - कष यानी संसार, आय यानी लाभ । जिससे संसार का
लाभ हो वह है कषाय । क्रोध, मान, माया, लोभ हमें नहीं करना चाहिए। 27. विवेक रखना - अपने हर कार्य में श्रावकोचित विवेक रखना।