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अरिहंत परमात्मा राजा जैसे है तो आचार्य भगवंत राजपुत्र के समान होते है। राजा की अनुपस्थिति में राजपुत्र, राजा के समान बनता है। उसी तरह तीर्थंकरों की अनुपस्थिति में आचार्य भगवंत को तीर्थंकर के समान गिना गया है।
जिनशासन की सेवा करने के साथ-साथ अवसर पर अनेक बाह्य आक्रमणों से शासन की रक्षा करने की जिम्मेदारी आचार्य भगवंतों को निभानी होती है।
___आचार्य भगवंत सूर्य के समान तेजस्वी होने के कारण उनका वर्ण पीला (केसरियो) होता है। उनके 36 गुणो का वर्णन पंचिंदिय सूत्र में मिलता है। प्र : आचार्य भगवंतों का विशिष्ट गुण कौन सा है ? उ : आचार्य भगवंतों का विशिष्ट गुण है - आचार
वे आचार के भण्डार होते है। स्वयं उच्च आचार का पालन करते है और अनेकों को उच्च आचार पालन की प्रेरण देते है। प्र : उपाध्याय भगवंतों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? उ : उपाध्याय भगवंत भी संसार के प्रति वैरागी बनकर दीक्षा लेने वाले साधु होते है। लेकिन उनमें यह एक विशिष्ट कला होती है कि जिनशासन के शास्त्रों का स्वयं अध्ययन कर अन्य साधुओं को भी सुंदर तरीके से उन शास्त्रों का अध्ययन कराते है। स्वयं शास्त्र अभ्यास करना और दूसरों को अभ्यास कराना – यह उनका मुख्य कार्य होता है। आचार्य भगवंत उपदेश देकर जिन्हें वैरागी बनाकर दीक्षा देते है उन्हें साधुजीवन में स्थिर बनाने की जिम्मेदारी उपाध्याय भगवंतों की होती है । उपाध्याय भगवंत अन्य साधुओं को सतत् शास्त्र अभ्यास कराते है, उन्हें साधुजीवन का सुंदर प्रशिक्षण देते है, साधुता में स्थिर करने और उन्हें सतत् उल्लसित रखने का कार्य उपाध्याय भगवंत करते है।
आचार्य भगवंत यदि पिता समान है तो उपाध्याय भगवंत माता समान । वे माँ के समान शिष्यों की देखभाल करते है। कभी प्यार से तो कभी फटकार से, कभी कोमलता से तो कभी सख्ती से वे साधु भगवंतों को संयम में स्थिर बनाए रखते है।
छोटा बालक यदि भूल करे तो माँ उसे समझाती है, मनाती है। नहीं मानता तो डांटती है और फिर भी न माने तो मारती भी है लेकिन हर समय बालक के प्रति माँ के हृदय में अपार प्रेम और वात्सल्य छलकता रहता है। माँ हमेशा बालक की भलाई चाहती है। उसी तरह उपाध्याय भगवंत भी सतत साधुओं का हित चाहते है
उपाध्याय भगवंत हमेशा साधुओं के शरीर की, मन की और विशेषकर उनकी आत्मा के हित की चिंता करते है। कभी किसी साधु से कोई भूल हो जाएं तो एक माँ की तरह उपाध्याय भगवंत उसे समझाते है, मनाते है। नहीं माने तो डांटते है और फिर भी नहीं माने तो उपाध्याय भगवंतों को चांटा लगाने का भी अधिकार है। लेकिन हर समय साधु के प्रति उपाध्याय भगवंत के हृदय में अपार स्नेह और वात्सल्य
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