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(इ) ज्ञानी की आशातना:- ज्ञान व ज्ञान के साधन की तरह ज्ञानी व्यक्ति की भी आशातना न की जाए। जैसे स्कूल के सर या मेडम हों, गुरू भगवंत हों, अपने विद्या गुरु हो, उनका विनय-सम्मान किया जाए, अनादर - तिरस्कार या निंदा न करें, उनके सामने न बोलें, उनकी हँसी-मजाक न करें, दुष्ट आचरण करने से ज्ञानी व्यक्ति की आशातना का पाप लगता है।
तो समझवार बाल श्रावकों ! जिस पुस्तक से आप ज्ञान प्राप्त करते हैं, जो व्यक्ति आपको ज्ञान देते हैं, उनकी आशातना उनके प्रति अविनय अब से मत करना। अच्छी तरह से समझ गए न ? (ई) ज्ञान की आशातना से हानि:- जो लोग ज्ञान की आशातना स्वयं करते है अथवा अन्य के पास करवाते हैं, वे आगाभी भवों में-जन्मों में अँधे-बहरे, गूंगे, तुतलाने वाले, पंगु, मूर्ख, मुँह के रोग वाले, कुष्ट रोग वाले और पराधीन बनते है। इतना ही नहीं, बल्कि बुद्धि भी प्राप्त नहीं होती, शरीर अपंग, त्रुटियुक्त मिलता है, ऐसा व्यक्ति जहाँ भी जाता है, वहाँ तिरस्कार प्राप्त करता है, दिन भर परिश्रम करने पर भी उसे पेट भरने जितना भोजन नहीं मिलता।
तो बच्चों ! यदि आपको जन्म-जन्मांतर में विद्वान - बुद्धिशाली, चतुर बनना है, सम्यग्ज्ञान का फल प्राप्त करना है और परीक्षा में उत्तीर्ण होना है तो ज्ञान की आशातना से सदैव दूर ही रहें। (उ) ज्ञान की आराधना से लाभ:- ज्ञान साधन व ज्ञान की आशातना का त्याग करने से सम्यग्ज्ञान की आराधना होती है, जिससे ज्ञानावरणीय कर्म का नाश होता है और जो पढते है वह स्मृति पटल पर गहन रूप अंकित हो जाता है तथा परंपरा में केवलज्ञान की प्राप्ति होती है।
गाथा याद करते (रटते) समय निम्नलिखित चार बातों का विशेष ध्यान रखें - (अ) सूत्र का शुद्ध रुप में रटन करें (अ) सूत्रों में पाठ बढाकर न बोलें (इ) शब्द अथवा मात्रा घटाकर न बोलें (ई) विद्या विनयपूर्वक ग्रहण करें।
सूत्रों का शुद्ध रटन करें:- गाथा कंठस्थ करते समय शुद्ध रीति से रटें, अशुद्ध न रटें, अर्थात् अक्षर क, लिखा हो तो ग न बोलें, अथवा शब्द तोडकर न बोलें, अर्थात् जिसके साथ लिखा हुआ हो उसके साथ ही बोलें अन्यथा अर्थ का अनर्थ होता है। जैसे...
आपको मान (सम्मान) चाहिये । यदि इसमें अक्षर अलग-अलग कर देते हैं तो आपको मान चाहिए (मा=मम्मी)
जिज्ञासा :- सूत्रों की शुद्धि - अशुद्धि पर इतना अधिक बल देने की क्या आवश्यकता है ? उसमें कुछ भी विशेष फर्क नहीं पडता ?
समाधान :- आपका प्रश्न सही है, परंतु उसका उत्तर मैं दूँ, इसके बजाय यहाँ आगे कही जाने वाली कुछ सुंदर कथाएँ ही इसका उत्तर आपको बहुत ही अच्छी तरह से दे देंगी। फर्क तो बहुत पडता है, अर्थ का हो जाता है, वह मै आपको बताता हूँ, कि पांडवों की माता का नाम क्या था ? = कुंती । अब यदि उस पर से बिंदु हटें तो शब्द बनता है = कुती, इसका अर्थ = कुतिया; तो अर्थ का अनर्थ हुआ या नहीं? इसी प्रकार चैत्यवंदन शब्द में वंदन शब्द पर से बिंदु हटा दे, तो वदन शब्द हो जाता है, जिसका
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