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जिससे तेरे सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। ऐसा स्वप्न आने के पश्चात् मैं तुरंत ही जाग उठा । प्रातः कालीन सर्व नित्य कर्मों से मैं निवृत्त होकर आपके पास आया कि ये महान् पुरुष दिखाई दिये। उस समय गुरु महाराज केशव के रात्रि भोजन के त्याग का सारा वृतांत कहा, तब राजा ने कहा, गुरुदेव ! स्वप्न में आने वाला वह दिव्य पुरुष कौन होगा ?
राजा के प्रश्न के उत्तर में अतिशय ज्ञानी गुरु महाराज ने कहा, राजन ! इस केशव की परीक्षा करने वाला वह्नि नामक यक्ष है। इसी यक्ष ने तुझे स्वप्न दिया है। तत्पश्चात् महाराजा केशव के साथ राजमहल
पधारें और भारी धूमधाम के साथ केशव का राज्याभिषेक किया। इसी तरह केशव - केशव मिटकर एक महान राजा केशव बन गया। धर्म की महिमा असीम है, धर्मश्रवण के प्रभाव से सुख समृद्धि और दिव्य सुख स्वतः प्राप्त हो जाते है, परंतु अपने तो माला फेरना प्रारंभ करने के साथ ही आकाश में ऊँचा देखते है कि स्वर्ण मुद्राएँ कब बरसें ? अपने को दृढता तो रखनी नहीं है, कसौटी में से निकलना नहीं है, नियमों का पालन दृढ रूप से करना नहीं है और तत्काल धन, सुख और समृद्धि की कामना और आकांक्षा रखते है ! यह तो आकाश कुसुमवत् व्यर्थ है ।
केशव के राज्याभिषेक के पश्चात् वहाँ के राजा ने गुरू महाराज के पास प्रवज्या अंगीकार की । धर्मी राजा केशव के मंगल आगमन से प्रजा में अनन्य आनंद छा गया। राजा केशव प्रतिदिन प्रभु की पूजाअर्चना करने लगे। दीन-दुःखी को देखकर उनके हृदय में दया- करुणा की उर्मियाँ उछलती थी। उनके द्वार दीन जनों के लिये खुले थे। ऐसे पुण्यशाली राजा के पुण्य से आकर्षित होकर सीमावर्ती राजा भी उनकी आज्ञा मानने लगे। राजा केशव न्यायनीति से राज्य का पालन करते थे, प्रजा आनंद विभोर बन चुकी थी।
एक दिन राजा केशव राजमहल के झरोखे में बैठे-बैठे नगर की शोभा देख रहे थे, राजा केशव को अपने पिता की स्मृति होने से पिता के दर्शन करने की उत्कंठा हुई। सज्जन कभी भी अपनी सज्जनता का त्याग नहीं करते । पिता ने घर से बाहर निकाल दिया था, फिर भी वह बात याद न करके पिता के दर्शन की अभिलाषा उनकी उत्तमता की परिचायिका है। वर्तमान काल की ओर हम जरा दृष्टिपात करें तो आधुनिक पुत्र तो अवश्य ही पिता का निंकदन निकालने के लिये तैयार हो जाए।
राजा केशव के हृदय में पिता के दर्शन की अभिलाषा होने पर साक्षात् उनके पिता राजमार्ग से निकलते हुए दिखाई पडे। जिनका मुख म्लान था, वस्त्रों का ठिकाना न था, परंतु केशव ने तुरंत अपने पिता को पहचान लिया । वे तुरंतु ही राजमहल में से उतर कर पिता के चरणों में झुक पडे। राजा के पीछे अनेक सेवक दौडकर आए। पिता की दयनीय स्थिति देखकर केशव का हृदय भर गया। राजा केशव ने कहा - पिताजी! आप तो समृद्धिशाली थे, आज आपका रंग-ढंग रंक जैसा क्यों लगता है ? केशव के पिता यशोधन को अपना पुत्र राजा बना है इस बात का पता चला, तब उनके नयन हर्ष और शोक से सजल हो गए। बोले-पुत्र केशव ! तेरे घर से निकल जाने के बाद हंस को मैने रात्रि भोजन करने के लिए बिठाया था। थोडा सा भोजन करने के पश्चात वह तुरंत ही जमीन पर लुढक पडा और बेहोश हो गया था।
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