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________________ दे सकते क्योंकि उस पर हमारे गुरुदेव का अधिकार है। तू हमारे साथ गुरुदेव के पास चल। उन्हें तू प्रार्थना करना। उनको योग्य लगेगा तो वे तुझे भोजन करायेंगे।' साधू के सरल और स्नेहभरे वचनों पर उस भिखारी को विश्वास बैठा। वह उन साधुओं के पीछे-पीछे गया। साधुओं ने गुरुदेव आचार्य श्री आर्यसुहस्ति को बात की। भिखारी ने भी आचार्यदेव को भाव से वंदना की और भोजन की मांग की। आचार्य श्री आर्यसुहस्ति विशिष्ट कोटि के ज्ञानी पुरूष थे। उन्होंने भिखारी का चेहरा देखा। कुछ पल सोचा, भविष्य में बड़ा धर्मप्रचारक होगा ऐसा जानकर भिखारी को कहा,'महानुभाव ! हम तुझे मात्र भोजन दे ऐसा नहीं परंतु हमारे जैसा तुझको बना भी दे। बोल तुझे बनना है साधू ?' भिखारी भूख से व्याकुल था, भूख का मारा मनुष्य क्या करने के लिए तैयार नहीं होता ? भिखारी साधू बनने के लिए तैयार हो गया। उसे तो भोजन से मतलब था और कपड़े भी अच्छे मिलनेवाले थे। भिखारी ने साधू बनने की हाँ कही। दयाभाव से साधुओं ने उसे वेश परिवर्तन कराकर दीक्षा दी और गोचरी के लिए बैठा दिया। ____ इस नये साधू ने पेट भरकर खाया। बड़े लम्बे समय के बाद अच्छा भोजन मिलने से, खाना चाहिये उससे अधिक खाया। रात को उसके पेट में पीड़ा हुई। पीड़ा बढ़ती गयी। प्रतिक्रमण करने के बाद सब साधू उसके पास बैठ गये और नवकार महामंत्र सुनाने लगे। प्रतिक्रमण करने आये हुए श्रावक भी इस नये साधू की सेवा करने लगे। आचार्यदेव स्वयं प्रेम से धर्म सुनाने लगे। यह सब देखकर नया साधू मन में सोचने लगा कि मैं तो पेट भरने के लिये साधू बना था। कल तक तो ये लोग मेरी और देखते भी नहीं थे और आज मेरे पैर दबा रहे हैं। और ये आचार्यदेव ! कितनी करूणा है उनमें । मुझे समाधि देने के लिए वे कैसी अच्छी धार्मिक बातें मुझे समझा रहे हैं। यह तो जैन दीक्षा का प्रभाव। परंतु यदि मैंने सच्चे भाव से दीक्षा ली होती तो...।' 108
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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