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पालन न कर सका ।' जल्दी से कान पर हाथ रखकर वह वहाँ से चल दिया ।
दिन ब दिन उसका उपद्रव बढ़ता गया । गाँव के नागरिकों ने इस चोर के उपद्रव से बचाने की विनती राजा श्रेणिक को की । राजा ने कोतवाल को बुलाकर चोर पकड़ने के लिए खास हुक्म दिया, लेकिन कोतवाल कड़ी मेहनत के बाद भी रोहिणेय को न पकड़ सका । राजा ने अपनी पुरी कोशिश की, आखिर अभयकुमार को चोर पकड़ने का कार्य सौंपा । अभयकुमार ने कोतवाल को कहा कि संपूर्ण सेना गाँव के बाहर रखो । जब चोर गाँव में घूसे तब चारों ओर सेना को घूमती रखो । इस प्रकार की योजना से रोहिणीया मछली की तरह जाल में फँस कर एक दिन पकड़ा गया ।
लेकिन महा उस्ताद चोर ने किसी भी प्रकार से खुद चोर है ऐसा स्वीकार न किया और कहा, 'मैं शालिग्राम में रहनेवाला दुर्गचंद नामक पटेल हूँ ।' उसके पास चोरी का कोई माल उस समय न था । सबूत के बिना गुनाह कैसे माना जाय ? और सजा भी कैसे दी जाय ? शालिग्राम में पूछताछ करने पर दुर्गचंद नामक पटेल तो था लेकिन लम्बे समय से वह कहीं पर चला गया है, ऐसा पता चला । अभयकुमार ने चोरी कबूलवाने के लिए एक युक्ति आजमायी । उसने देवता के विमान की तरह महल में स्वर्ग जैसा नजारा खड़ा किया । चोर को मद्यपान करा कर बेहोश किया, कीमती कपड़े पहनाये । रत्नजड़ित पलंग पर सुलाया और गंधर्व जैसे कपड़े पहनाकर दास-दासियों को सब कुछ सिखा कर सेवा में रखा । चोर का नशा उतरा । वह जागा तब इन्द्रपुरी जैसा नजारा देखकर आश्चर्य चकित हो गया । अभयकुमार की सूचना अनुसार दास-दासी, 'आनंद हो आपकी जय हो' जयघोष करने लगे और कहा, 'हे भद्र ! आप इस विमान के देवता बन गये हों । आप हमारे स्वामी हो । अप्सराओं के साथ इन्द्र की तरह क्रीड़ा करो ।' इस तरह चतुराई पूर्वक बड़ी चापलूसी की । चोर ने सोचा, वाकई मैं देवता बन गया हूँ ? गंधर्व जैसे अन्य सेवक संगीत सुनवा रहे थे । स्वर्ण छड़ी लेकर एक पुरुष अन्दर आया और कह लगा, ́ ठहरो ! देवलोक के भोग भुगतने से पहले नये देवता अपने सुकृत्य और दुष्कृत्य बताये - ऐसा एक नियम है । तो आपके पूर्व भव के सुकृत्य वगैरह बताने की कृपा करे ।' रोहिणेय ने सोचा, वाकई यह देवलोक है? ये सब देव-देवियाँ हैं या कबूलवाने के लिए अभयकुमार का कोई प्रपंच है?
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सोचते-सोचते उसे प्रभु महावीर की वाणी याद आई । उन लोगों के पाँव जमीन पर हैं। फूलों की मालाएँ मुरझाई हुई हैं और पसीना भी खूब छूटता है, आँखें भी पलकें झपकाती हैं, अनिमेष नहीं है इसलिये यह सब माया है । मन में ऐसा तय किया कि ये देवता नहीं हो सकते । इसलिये झूठा उत्तर दिया, 'मैंने पूर्व भव में जैन चैत्यों का निर्माण करवाया है, प्रभु पूजा अष्टप्रकार से की है ।' दण्डधारी ने पूछा,' अब आपके दुष्कृत्यों का वर्णन कीजिये ।' चोर ने कहा, मैंने कोई दुष्कृत्य किया ही नहीं है । यदि मैंने दुष्कृत्य किया होता तो देवलोक में आता कैसे ?' इस प्रकार युक्तिपूर्वक उत्तर दिया । अभयकुमार की योजना नाकाम रही । रोहिणेय को छोड़ देना पड़ा ।
छुटकारा होते ही वह सोचने लगा, पल दो पल की प्रभु वाणी बड़े काम आई । उनकी वाणी अधिक सुनी होती तो कितना सुख मिलता ? मेरे पिता ने गलत उपदेश देकर मुझे संसार में भटकाया है । यों
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