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यावत् 563 भेद भी हो सकते हैं। बिना प्राण के प्राणी जीवित नहीं रह सकता। भाव प्राण जीव के ज्ञानादि स्वगुण हैं, जो सिद्धात्माओं में पूर्णतया प्रगट हैं तथा संसारी आत्मा में अपूर्ण - न्यूनाधिक होते हैं। संसारी जीव को जीने के लिए द्रव्य प्राणों और पर्याप्तियों की अपेक्षा रहती है।
वर्तमान समय में हम संज्ञी पंचेन्द्रिय हैं। विश्व के अन्य जीव जन्तुओं से हम अधिक बलवान और पुण्यवान हैं। हमें 10 प्राण, 6 पर्याप्तियाँ और आंशिक रूप में भाव प्राण रूप विशिष्ट शक्ति मिली है। इन विशिष्ट शक्तियों का सदुपयोग स्व-पर हित में करने के लिए सदैव उद्यमवंत रहना चाहिए, क्योंकि बार-बार ऐसी विशिष्ट शक्तियाँ प्राप्त होना सुलभ नहीं है।
उत्कृष्ट पुण्य से प्राप्त ये शक्ति खत्म न हो जाय इसका पूरा ख्याल रखकर स्व-पर हित की पवित्रतम साधना में प्रयत्नशील बने रहना यह मनुष्य जीवन का कर्तव्य है।
प्रकार :
(अ) विभिन्न दृष्टि से जीव चेतना की अपेक्षा से
स और स्थावर की अपेक्षा से
पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नंपुसकवेद की अपेक्षा से
देवगति, मनुष्यगति, तिर्यंचगति, नरकगति की अपेक्षा से एकेन्द्रीय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय की अपेक्षा से
1. जीव का एक प्रकार 2. जीव के दो प्रकार 3. जीव के तीन प्रकार -
4. जीव के चार प्रकार
5. जीव के पाँच प्रकार
6. जीव के छ: प्रकार
-
इन्द्रिय - 5 :
बल 3 :
-
पृथ्विकाय, अप्काय, तेऊकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय की अपेक्षा से
(आ.) प्राण :- जीने के साधन को प्राण कहते हैं।
प्राण के मुख्य दो प्रकार हैं 1. द्रव्य प्राण, 2. भाव प्राण ।
संसारी जीवों में द्रव्य और भाव ये दोनों प्राण होते हैं। सिद्धों में सिर्फ भाव प्राण होते हैं। उनमें द्रव्य प्राण नहीं होते हैं।
द्रव्य प्राण
1. इन्द्रिय
2. बल
3. श्वासोच्छ्वास
4. आयुष्य
10
5
3
1
1
भाव प्राण 4
1. दर्शन
2. ज्ञान
3. चारित्र
4. वीर्य वगैरह
10
स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, श्रोतेन्द्रिय
मन बल, वचन बल, काय बल
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