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1. ज्ञानावरणीय कर्म
1. ज्ञानावरणीय कर्म यह कर्म जीव को (1) बुद्धिमान, (2) चतुर, (3) मूर्ख, (4) मंदबुद्धि इत्यादि बनाता है।
यह कर्म आत्मा के अनंतज्ञान गुण को रोकता है।
इस कर्म के उदय से जीव को बुद्धि की न्यूनता प्राप्त होती है। वस्तु का विशेष बोध नहीं होता...पागलपन आता है। यह कर्म आँख पर बंधी पट्टी के समान है। जिस तरह पट्टी बंधा हुआ मानव देख नहीं सकता उसी तरह इस कर्म के आवरण से जीव को ज्ञान प्राप्त करने में रुकावट होता है।
प्रश्न.1 ज्ञानावरणीय कर्म बंध के कौन से कारण हैं ? उत्तर ज्ञान, ज्ञानी एवं ज्ञान के उपकरणों (साधन) की आशातना करना। पढ़ते हुए को अंतराय करना।
पेपर (अखबार) कागज आदि में खाना, ऊपर बैठना, पैर-थूक लगाना, पेशाब करना, उसमें बच्चों को टट्टी कराना, टट्टी साफ करना, जलाना, लिखे हुए अक्षरों को थूक से मिटाना। अक्षर वाले कपड़े, बूट-जूते पहनना। ज्ञानी व्यक्ति की ईर्ष्या करना, सताना, अनादर, अपमान करना, पढ़ाने वाले गुरु को छिपाना, हैरान करना, धाक धमकी देना, पेन पेन्सिल मुँह में डालना वगैरह।
प्रश्न.2 ज्ञानावरणीय कर्म का फल क्या ? उत्तर अत्यंत अज्ञानता प्राप्त होती है। मंद बुद्धि होती है। बार-बार याद करने पर भी शीघ्र भूल जाता
आ है। बहरा-गूंगा-अंधा-तोतला व पंगु होता है। बाल्यकाल में माता-पिता का वियोग होता है। लोकों में तिरस्कृत होते हैं।