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________________ (उपरोक्त हाठों विनय माता-पिता, गुरु आदि उपकारी जनों के जीवित अवस्था के दौरान ही करने चाहिए। बाकी के चार विनय उनकी अनुपस्थिति में करने चाहिए।) 9. उनके 3 सनादि का उपयोग न करना: उनके जीवन के दौरान उपयोग में आयी हुए सभी चीजे दान करनी चाहिए। उन्हें अपने जीवन में उपयोग में लाने से उनका अविनय होता है। 10. वारसा त संपत्ति का उपयोग तीर्थादि में करना : अपने व्यक्तिगत पुण्य से माता-पिता द्वारा अर्जित संपत्ति उनकी मृत्यु के बाद तीर्थों के निर्माण/विकास आदि में उपयोग में लानी चाहिए। उनकी संपत्ति का उपयोग संतान द्वारा अपने लिए कतई नहीं करना चाहिए। 11. माता- पेता की प्रतिकृति को नमस्कार: माता-पिता की अनुपस्थिति में उनकी फोटो अथवा उनकी मूर्ति बनवाकर घर में रखें और हर रोज उनके उपकारों को याद कर उन्हें प्रणाम करें। माता-पिता द्वारा भराई हुई प्रतिमा की उनकें मरणोपरांत पूजा करते-करते उन्हें याद करना चाहिए। 12. मरणोपरांत की क्रियाएँ करावें : माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् शास्त्रों में दर्शायी गयी 16 संस्कारों की क्रिया का अंतिम संस्कार अग्नि संस्कार विधिवत् करना चाहिए। तत्पश्चात् उनके आत्म श्रेयार्थ परमात्म भक्ति महोत्सव, जीवदया, अनुकंपा, साधर्मिक भक्ति के कार्य करके उन्हें याद करना चाहिए। इस प्रकार उपरोक्त बारह प्रकार से माता-पिता, धर्माचार्य, विद्यादाता आदि का विनय करना, भक्ति एवं पृता करनी चाहिए। LA
SR No.006118
Book TitleJain Tattva Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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